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________________ ४५ह स्त्रियों को स्थिति तथा विवाह संस्था सम्बन्धी शास्त्र चर्चा में भी भाग लेतीं थीं । परन्तु वैदिक कालीन नारी से सम्बद्ध कुछ दूसरे पहलू भी विचारणीय हैं । वैदिक चिन्तक पितृप्रधान परिवार तन्त्र में नारी को पैतृक सम्पत्ति का अधिकारी नहीं मानते तथा उसके पुरुषायत्त रहने की मान्यता का विशेष पोषण करते हैं । 3 ऋग्वेद स्पष्ट रूप से स्त्रियों को दास की सेना तथा अस्त्र-शस्त्र के रूप में मूल्यांकित करता है । उन्हें भेड़ियों के हृदय तुल्य कठोर एवं विश्वासघाती माना गया है । शतपथ ब्राह्मण नारी को पुरुषाधीन मानने का विशेष पक्षधर है । इस प्रकार वैदिक कालीन नारी को कुछ सीमा में पुरुषों के समान सामाजिक अधिकार प्राप्त थे परन्तु नारी को पुरुषायत्त मानने एवं उसे हेय बताने की कुण्ठाएं भी वैदिक युग में अपना स्थान बना चुकीं थीं। इसी सन्दर्भ वैदिक कालीन दार्शनिक प्रवृत्तियों की ओर यदि दृष्टिपात किया जाए तो हम देखते हैं कि सृष्टि के मूल कारण के रूप में पुरुष तत्त्व की ही विशेष प्रतिष्ठा की जा रही थी । ऋग्वेद के पुरुषसूक्त, ६ हिरण्यगर्भ सूक्त, जिन सृष्टि विषयक मान्यताओं का सम्पोषण करते हैं व्यवस्था से अनुप्रेरित होकर ही पुरुष तत्त्व को सृष्टि का प्राचीन भारतीय धार्मिक एवं दार्शनिक मान्यताओंों में मानने के मनोविज्ञान ने भी नारी की स्थिति को चूंकि भारतीय समाज वैदिक व्यवस्था के मूल्यों तथा परम्परानों से विशेष प्रभावित हुआ है फलतः नारी को प्रधानता देने वाली वेदेतर समाज व्यवस्थाएं या तो लुप्त हो गईं या फिर उन्हें पुरुषप्रधान समाजव्यवस्था के अन्तर्गत श्रात्म समर्पण करना पड़ा । ७ नासदीय सूक्त श्रादि वे पितृप्रधान परिवार मूल कारण बताते हैं । 'पुरुष' को 'नारी' से ऊंचा विशेष प्रभावित किया है । जैसा कि स्पष्ट है वैदिक काल में ही स्त्रियों के विषय में पुरुषाश्रित मानने की धारणा का अस्तित्व आ गया था जो धर्मसूत्रों के काल में और अधिक विकसित होती गईं। गौतम, वसिष्ठ, बौधायन आदि सभी धर्मसूत्रकारों ने यह घोषणा की है कि स्त्रियां स्वतन्त्र नहीं हैं, सभी मामलों में वे प्राश्रित एवं परतन्त्र १. जयशंकर मिश्र, प्राचीन भारत का सामाजिक इतिहास, पृ० ३८४ २. ऋग्वेद ३.३१.२, तैत्तिरीय संहिता, ६.५.८.२ ३. पी. वी. काणे, धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग १, पृ० ३२५ ४. ऋग्वेद, ५.३०.६ तथा १०.६५.१५ शतपथ ०, ११.५.१.६ ५. ६. ऋग्वेद, १०.६० ७. वही, १०.१२१ ८. बही, १०.१२६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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