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________________ ४६० जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज हैं ।' धर्मसूत्रों के समय में यद्यपि बहुपत्नीकता का विशेष | समर्थन किया जाने लगा था परन्तु प्रादर्श के रूप में एक पत्नीव्रत की विशेष प्रशंसा भी की जाती थी । धर्मसूत्रकारों ने निर्दोष पत्नी के त्याग को एक भयंकर अपराध माना है तथा उसके लिए भयंकर सजा का प्रावधान भी किया है । 3 बौद्ध कालीन नारी सामान्यतया यह स्वीकार किया जाता है कि भगवान् बुद्ध के धर्मोपदेशों का महत्त्व पुरुष और स्त्री दोनों के लिए समान है । इस धार्मिक स्वतन्त्रता के प्राग्रह से नारी के प्रति बुद्ध ने सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाया था परन्तु तत्कालीन समाज में नारी समस्याओं की जो भयंकर विभीषिकाएं व्याप्त हो चुकी थीं उनके प्रतिकार बौद्ध धर्म की कोई विशेष भूमिका देखने में नहीं आती है। इसका एक मुख्य कारण यह भी था कि स्वयं भगवान् बुद्ध नारी को सांसारिक रागवृत्ति का मूल कारण मानते थे । दूसरा कारण यह भी था कि बौद्ध समाज व्यवस्था भी वैदिक व्यवस्था के समान, पुरुषप्रधान परिवारतन्त्र पर श्रारूढ़ थी जिसका प्रधान 'गहपति' (गृहपति) होता था । इन समाजशास्त्रीय परिस्थितियों में बौद्धधर्म नारी की सामाजिक स्थिति को सुधारने में अथवा पूर्व प्रचलित नारी मूल्यों में किसी प्रकार के गुणात्मक परिवर्तन को ला सकने में पूरी तरह से असमर्थ रहा है। बौद्ध श्रागमों से यह जाना जा सकता है कि स्वयं बौद्ध संघ में ही नारी को पुरुष के बराबर अधिकार प्राप्त नहीं थे । ७ चुल्लवग्ग' में बौद्ध भिक्षुणियों के लिए संघ व्यवस्था देते हुए बुद्ध का कथन है कि सो वर्ष की भिक्षुणी सद्य प्रव्रजित भिक्षु को अभिवादन करे और उसकी पूजा करे 15 बुद्ध संघ में भिक्षुणियों के प्रवेश को भी सर्वथा वर्जित मानते थे । यही कारण है कि बौद्ध ने श्रानन्द के विशेष आग्रह पर भी गौतमी के नेतृत्व में आई स्त्रियों को दीक्षित करने हेतु उदासीनता प्रकट की और आनन्द के विशेष नैतिक दबाव में आकर ही उन्होंने १. पी. वी. काणे, धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग १, पृ० ३२५ २. आपस्तम्बधर्मसूत्र, २. ५.११.१२-१३ ३. वही, ११०.२८.१६ ४. अंगुत्तरनिकाय २.५७, ५. इत्थो मलं ब्रह्मचारियस्स एत्पापं सज्जते पजा । —संयुतनिकाय १.३६ ६. जयशंकर मिश्र, प्राचीन भारत का सामाजिक इतिहास, पृ० ३० ७. चुल्लवग्ग, १०.१ ८. वही, १०.२ ६. कोमलचन्द्र जैन, बौद्ध और जैन श्रागमों में नारी जीवन, पृ० १७६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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