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शिक्षा, कला एवं ज्ञान-विज्ञान
दिखाई देते हैं । " जैन महाकाव्यों में १४ प्रथवा १३ 3 प्रकार के स्वप्नों की चर्चा आई है । संक्षेप में इन स्वप्नों में दृष्टिगत होने वाली वस्तुओं की तालिका इस प्रकार है
१. ऐरावत गज, २. वृष (बैल), ३. सिंह, ४. लक्ष्मी, ५. माला, ६. चन्द्रमा, ७. सूर्य, ८. मत्स्य युगल ९ स्वर्ण- कुम्भ १०. सरोवर, ११. समुद्र १२. स्वर्ण सिंहासन, १३. विमान, १४. नागेन्द्र भवन, १५. रत्न तथा १६. श्रग्नि । ४
श्वेताम्बर परम्परा की मान्यता वाले चतुर्दश स्वप्नों' में 'मत्स्य युगल' तथा 'स्वर्ण सिंहासन' का उल्लेख नहीं आया है । फलतः त्रिषष्टिशलाकापुरुष ० श्रादि श्वेताम्बर महाकाव्यों में चतुर्दश स्वप्नों की तथा चन्द्रप्रभचरित आदि दिगम्बर महाकाव्यों में षोड्स स्वप्नों की धार्मिक मान्यताएं प्रतिबिम्बित हैं । इन स्वप्नों के पृथक्-पृथक् फल का भी उल्लेख हुआ है ।
froकर्ष
इस प्रकार विविध प्रकार की कलामों, प्रायुर्वेद श्रादि ज्ञान-विज्ञानों से सम्बद्ध मध्यकालीन भारतवर्ष की महत्त्वपूर्ण शैक्षिक गतिविधियों की जानकारी देने की दृष्टि से जैन संस्कृत महाकाव्यों की सामग्री अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । वर्तमान में लेकर तथा राधाकुमुद मुकर्जी सदृश विद्वानों ने प्राचीन भारतीय शिक्षा पर जो प्रकाश डाला है उसमें जैन साहित्य के स्रोतों का स्थान नहीं के समान है । प्रस्तुत अध्याय में तुलनात्मक इतिहास निष्ठ चेतना से शिक्षा संस्था के विभिन्न पहलु को भलीभांति स्पष्ट किया गया है । इसके अतिरिक्त शिक्षा से सम्बन्धित पाठ्यक्रमों, आदि के सम्बन्ध में जैन संस्कृत महाकाव्यों के स्रोत कुछ नवीन तथ्यों का उद्घाटन भी करते हैं। शिक्षण विधियों की दृष्टि से भी जैन महाकाव्यों के साक्ष्य कतिपय नवीन एवं प्रतिरिक्त तथ्य एवं सूचनाएं प्रदान करते हैं ।
मध्यकालीन भारतवर्ष में प्रचलित शिक्षा के मूल्य ब्राह्मण संस्कृति के पारम्परिक चौदह विद्यानों से सम्बद्ध रहते हुए भी समसामयिक परिस्थितियों से
१. चन्द्र०, १६.५७
२. त्रिषष्टि०, ३.१.११६-२१
३. घर्म० ५.५६-७७, चन्द्र०, १६.५८-६०
४. वही,
५.
कल्पसूत्र, ३३-४७
६. विषष्टि०, ३.१.११६-२१
७. धर्म०, ५८२.८० चन्द्र०, १६.६३-९६