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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
शब्द करना, छींक पाना, सांप का रास्ता काटना, कांटे वाले वृक्ष पर कौए का कर्कश स्वर सुनना, घोड़े की पूंछ पर आग लग जाना, प्रतिकूल वायु का बहना,' आदि अपशकुन माने जाते थे। नलायन महाकाव्य के अनुसार रात्रि में इन्द्र धनुष दिखाई देना, ग्रहों का एक दूसरे से टकराव होना, उल्कापात, केतु का उदय होना, दिन में चन्द्रमा का उदित होना तथा रात्रि को प्रस्त हो जाना, दिग्दाह, रजोवृष्टि, भूमिप्रकम्प, ग्रादि प्राकृतिक विकार प्रकट होना, सिंह आदि हिंसक पशुओं की चिंघाड़ सुनाई पड़ना, वन्य पशुओं का ग्रामों में रहना तथा ग्रामपशुत्रों का वनों में रहने लगना, दुर्ग पक्षी द्वारा नीड बनाकर बैठना; स्थलचर जीव जल में तथा जलचर जीव स्थल में रहने लगना, अस्थि, सर्प, इन्धन, तेल विकृतांग व्यक्ति तथा वन्ध्या एवं रजस्वला नारी का दर्शन होना प्रादि अपशकुन माने जाते थे। प्राय: उपर्युक्त शकुनों तथा अपशकुनों की चर्चा विशेष रूप से युद्ध-प्रयाण के प्रसङ्गों में पाई है । जन-सामान्य में शकुनों तथा अपशकुनों के प्रति विश्वास भावना रही थी। यहां तक कि वैद्यक ग्रन्थों में वैद्यों तक के लिए ये निर्देश थे कि जब भी वे किसी रोगी की चिकित्सा करने के लिए जाएं को उस अवसर पर होने वाले शकुनों तथा अपशकुनों की भी विशेष परीक्षा कर लें।४
४. स्वप्न-शास्त्र
निमित्त शास्त्र के अन्तर्गत 'स्वप्न शास्त्र' की चर्चा पाती है ।५ तत्कालीन समाज में लोगों का धार्मिक दृष्टि से स्वप्नों पर विश्वास था तथा इनका फल बताने वाले 'नैमित्तिक' कहलाते थे ।६ जैन महाकाव्यों में जिन १४ अथवा १६ स्वप्नों का उल्लेख पाया है उनका जैम परम्परा की दृष्टि से विशेष महत्त्व रहा था। किसी तीर्थङ्कर के गर्भ में होने पर कुछ विशिष्ट प्रकार के स्वप्न प्रायः उनकी माता को
१. चन्द्र०, १५.३२-३४ २. नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत काव्य के विकास में, पृ० ५७४-७५ ३. नलायन महाकाव्य, ४.६.६५-७३ ४. Sternbach, L., Jurdical Studies in Ancient Indian Law, Pt. I,
Delhi, 1965, p. 289 ५. त्रिषष्टि०, २२.८६-६८ ६. नैमित्तिकाः पुरो राज्ञो विज्ञप्ता वेत्रधारिणा। देव द्वासप्ततिः स्वप्नाः स्वप्नशास्त्रे प्रकीर्तिताः। -वही, २.२.६१ तथा
२.२.१८