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शिक्षा, कला एवं ज्ञान-विज्ञान
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अनेक तर्कों के प्राधार पर जटासिंह ब्राह्मण संस्कृति के खंण्डन करने की अपेक्षा से ही ग्रहों आदि की वैज्ञानिकता तथा उनके शुभत्व-अशुभत्व के गणित को चुनौती देते हैं।'
३. शकुन शास्त्र
प्रायः विद्वान् शकुन-अपशकुनों की चर्चा अन्ध विश्वासों आदि के सन्दर्भ में करते हैं । मध्यकालीन भारतीय जन-जीवन में शकुनों तथा अपशकुनों को अन्धविश्वास के रूप में स्वीकार नहीं किया गया था। राजा भी शकुनों तथा अंपशकुनों पर पूर्ण विश्वास करते थे। दिग्विजय प्रस्थान अथवा युद्धप्रयाण आदि महत्त्वपूर्ण अवसरों पर शकुनों-अपशकुनों पर विशेष विचार किया जाता था ।२ तत्कालीन समाज में शकुनों तथा अपशकुनों का सामाजिक दृष्टि ये कितना महत्त्व था, इसका अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि तत्कालीन शिक्षा-जगत् में भी 'शकुनशास्त्र' एक स्वतन्त्र विद्या के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका था। जैन महाकाव्यों में अनेक प्रकार के शकुनों तथा अपशकुनों की चर्चा पाई है। शकुन कार्य सिद्धि के द्योतक थे तथा अपशकुनों से अनिष्ट प्राप्ति होने की मान्यताएं प्रसिद्ध हो चुकी थीं। पालोच्य युग में शकुनों तथा अपशकुनों की स्थिति इस प्रकार थी
शकुन - जल, दही प्रादि से भरे घड़ों को देखना, बायीं ओर शगाली अथवा गधे का शब्द सुनना, खंजरीट (भारद्वाज) पक्षी द्वारा परिक्रमा करना, कौए का दूध वाले वृक्ष में बैठकर ध्वनि करना, अनुकूल वायु का चलना, धान्य अंकुरों से युक्त घड़े देखना प्रादि शुभ शकुन माने जाते थे।
अपशकुन-मस्तकस्थित आभूषण का नीचे गिर जाना, रानी की राजा द्वारा मृत्यु हो जाना, कुरूप व्यक्ति सामने प्रा जाना, दायीं ओर शृगाली का
१. ग्रहतो जगतः शुभाशुभानि प्रलपन्तो विमतीन्प्रवञ्चयन्ति ।। .
-वराङ्ग०, २४.३१ २. चन्द्र०, १५.२७-२८; हम्मीर०, १२.२६; वर्ष०, ६.१७ ३. नेमिचन्द्र शास्त्री, आदिपुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० २७२ ४. हम्मीर०, १२.२६; द्वया०, ३.८८ ५. चन्द्र०, १५.२७-२८ ६. वध, ६.१७, द्वया०, ३.७१ ७. द्वया०, ४.६६ ८. वही, ४.६७ ६. वही, २.३३