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________________ शिक्षा, कला एवं ज्ञान-विज्ञान ४३५ ७. साहित्यशास्त्र - साहित्यशास्त्र सम्बन्धी अध्ययन के अन्तर्गत काव्यशास्त्र एवं सृजनात्मक काव्यरचना का अध्यापन सम्मिलित था।२ जैन संस्कृत महाकाव्यों के प्रारम्भिक सर्गों में कवियों द्वारा काव्य सम्बन्धी सिद्धान्तों का भी परिचय कराया गया है। इन काव्य सिद्धान्तों में काव्य के गुणों, दोषों तथा अन्य काव्य सम्बन्धी नवीन मान्यतामों का तत्कालीन सन्दर्भ में विशेष महत्त्व रहा था। काव्यविद्या की शिक्षा देते समय प्राचार्य राजकुमारों को उत्प्रेक्षादि शब्दालङ्कारों एवं अर्थालङ्कारों, अर्थस्फुटत्व एवं उद्देश्यपरक काव्य की रचना कराने का अभ्यास भी कराते थे।४ प्रादिपुराण,५ वराङ्गचरित,६ द्वयाश्रय आदि महाकाव्यों में राजकुमारों को 'काव्यविद्या' की शिक्षा देने के उल्लेख प्राप्त हुए हैं। संस्कृत के प्रसिद्ध कवियों तथा उनके काव्य ग्रन्थों का अध्ययन किया जाता था। राजस्थान आदि प्रदेशों में जैन कवि कालिदास, माघ, भारवि, भट्टि, वाक्पति तथा हर्ष की रचनात्रों का विशेषरूप से अध्ययन करते थे। स्वयं माहामात्य वस्तुपाल ने 'नरनारायणानन्द' महाकाव्य की रचना की थी। इसके अतिरिक्त द्विसन्धान महाकाव्य, द्वयाश्रय महाकाव्य, तथा सप्तसन्धान महाकाव्यों के पाण्डित्य प्रदर्शन एवं देवानन्द तथा शान्तिनाथचरित महाकाव्यों की समस्यापूतिपरक प्रतिभा को देखकर यह अनुमान लगाना सहज हो जाता है कि यद्यपि ८वीं शताब्दी से लेकर १७वीं शताब्दी तक की काव्य साधना कृत्रिम थी तथापि अध्ययन-अध्यापन के सन्दर्भ में निःसन्देह इस युग को भी काव्य का सजनात्मक युग माना जाना चाहिए। शब्दक्रीड़ा एवं वाग्विलास इस युग की महत्त्वपूर्ण काव्य प्रवृत्तियाँ रहीं थीं। ८. युद्धविद्या-पालोच्य महाकाव्य युग में युद्धविद्या की शिक्षा राजकुमारों के लिए अनिवार्य विद्या के रूप में दृष्टिगत होती है। युद्ध विद्या के अन्तर्गत १. त्रिषष्टि०, २.३.२५ २. साहित्यवल्लीकुसुमैः, काव्यः कर्णरसायनः । -वही, २.३.२६ ३. वसन्तविलास, सर्ग-१, कोति०, १.१-२६, वराङ्ग०, १.६, आदि०, १.६२-६६ ४. वही ५. आदि०, १६.१११ ६. वराङ्ग०, २.६ ७. द्वया०, १५.१२०-२१ 5. Sharma, Dashratha, Rajasthan Through the Ages, p. 514 ६. त्रिषष्टि०, २.३-३५-३७
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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