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________________ शिक्षा, कला एवं ज्ञान-विज्ञान ४३३ शिक्षा में दर्शन विषय अत्यधिक लोकप्रिय रहा होगा । दर्शन की शाखाओं में 'न्याय' सर्वाधिक लोकप्रिय एवं अध्ययन अध्यापन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण दर्शन बन चुका था । न्यायदर्शन एक स्वतन्त्र विषय के रूप में उभर कर आया तथा तत्कालीन विद्यानों में 'तर्कशास्त्र' के रूप में प्रसिद्ध हो गया ।" जैन महाकाव्यों के आधार पर विभिन्न दर्शनों के प्रमुख तत्त्वों के उल्लेखों से ज्ञात होता है कि दर्शन विषयक अध्ययन-अध्यापन की दशा विशेष समृद्ध थी तथा पूर्वपक्ष एवं उत्तर पक्ष के माध्यम से खण्डन मण्डन पद्धति में विद्यार्थियों को निष्णात किया जाता था । दर्शन के क्षेत्र में प्रायः वाद-विवाद हुआ करते थे । इस कारण प्रत्येक दर्शन का विद्यार्थी 'न्याय' में विशेष परिश्रम करता था । अल्तेकर महोदय का कथन है। कि न्याय दर्शन के छात्र से अपने दर्शन में निपुण होना ही अपेक्षित न था अपितु अन्य दर्शनों के खण्डन करने के सामर्थ्य को भी उससे विशेष अपेक्षा की जाती थी । इस कारण 'न्याय' दर्शन को शिक्षा में 'तर्कशास्त्र' ४ तथा 'प्रमाण शास्त्र' ५ के रूप में भी एक स्वतन्त्र विद्या का स्थान प्राप्त था। जैन कुमारसम्भव में न्याय के १६ तत्त्वौ -- प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति तथा निग्रह स्थान ७ का उल्लेख आया है । प्रादिपुराण के अनुसार न्याय के अन्तर्गत द्रव्य, गुण, कर्म सामान्य प्रादि सप्त पदार्थों का प्रवबोध कराया जाता था । ६. राजनीतिशास्त्र राजतन्त्र से सम्बन्धित विद्या के अन्य पर्यायवाची नाम राजविद्या, ६ अर्थशास्त्र १० sata १ क्षत्रविद्या १२ श्रादि प्रचलित थे । , १. तत्राशेषाः कला न्यायं शब्दशास्त्रादि चापरम् । २. अल्तेकर, प्राचीन भारतीय शिक्षण पद्धति, पृ० ११८ ३. वही, पृ० ११८ ४. द्वया०, १३.४६ ५. त्रिषष्टि०, २.३.२७ ६. जैम कुमारसंभव, १०.६४ ७. वही, धर्मशेखरकृत टीका, पृ० ३५२ — त्रिषष्टि०, २.३.२२ ५. द्विस०, २.८; त्रिषष्टि०, २.३.३६; द्वया०, १५.२० ६. राजविद्यया — प्रान्वीक्षिकी त्रयी- वार्ता दण्डनीति- लक्षणया । — नेमिचन्द्रकृत पदकौमुदी टीका, द्विस० २.८, पृ० २६ १०. त्रिषष्टि०, २.३.२६ ११. Narang, Dvayāśrayakāvya, p. 208 १२. द्वया०, १५.१२०
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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