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शिक्षा, कला एवं ज्ञान-विज्ञान
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कलाओं से सम्बन्धित विद्यानों में किसी एक विद्या में से दक्षता प्राप्त की जाती थी। इन विद्याओं में वीणावादनकला, वेणुवादन कला, पटहवादनकला, मर्दलवादनकला, काव्यगायनकला, शिक्षागायनकला, रङ्गमञ्चकला, नाट्यकला, स्वस्तिवाचनकला, चारणकला, लिपिकला, लेखनकला, चित्रकला, मूर्तिकला, शिल्पकला, नदीसंस्तरण कला, समुद्रसंस्तरण कला, इन्द्रजाल बिद्या, कुहकप्रयोगविद्या, छन्दकला प्रादि महत्त्वपूर्ण विद्याएं प्रचलित थीं। ब्राह्मण वर्ग में पौरोहित्य कला, से सम्बन्धित स्मार्त-विद्या, पुराणविद्या, निमित्तविद्या, श्रुतिविद्या, त्रिविद्या आदि विशिष्ट विद्यामों में दक्षता प्राप्त की जाती थी। स्त्री लक्षण तथा पुरुष लक्षण भी विद्या के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। मायुर्वेद की विभिन्न शाखाएं भी स्वतन्त्र विद्या में रूप में विकसित होने लगी थीं। वराङ्गचरित में व्यायाम विद्या का भी विशिष्ट विद्या के रूप में उल्लेख पाया है।
चौदह वैदिक विद्यानों में पारङ्गत ब्राह्मण अपनी शैक्षिक योग्यता के बल पर श्रोत्रिय, पौराणिक, स्मार्तिक मौहुर्तिक आदि के रूप में गुरु-पुरोहित आदि का व्यवसाय कर सकते थे। इसी प्रकार के शस्त्रास्त्रों की शिक्षा देने वाले 'चापाचार्य' मादि विभिन्न व्यावसायिक पदों का अस्तित्व बन चुका था। संग्रामविद्या इस युग में बहुत लोकप्रिय विद्या रही थी, इस कारण संग्राम सम्बन्धी अनेक
१. त्रिषष्टि०, २.६.२३२-४४ तथा २.६.२२५ २. लक्षणानि पुरुषस्य योषितः । -पद्मा०, १०.७८ ३. पद्मा०, ६.१७, त्रिषष्टि०, २.३.२० ४. व्यायामविद्यासु कृतप्रयोगाः । -वराङ्ग०, २.१६ ५. तत्र किं श्रोत्रियोऽसि त्वमसि पौराणिकोऽथवा ? स्मात? वा ? मोहूर्तोवाऽसि, त्रिविद्याविदुरोऽसि वा ?
-त्रिषष्टि०, २.६.२३३ चापाचार्योऽसि यदि वा ? चर्माऽसिचतुरोऽसि वा ? किं वा प्रासे कृताभ्यासः ? शल्ये वा प्राप्तकोशल: ? यद्वा गदायुधज्ञोऽसि शक्ती वा ? मुसले कुशलोऽसि वा ? निरर्गलो लाङ्गले वा ? चके वा प्राप्तविक्रमः ? कृपाण्यां निपुणोऽसि वा ? बाहुयुद्धेऽथवा पटुः ? -वही, २.६.२३४-३६