SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 447
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शिक्षा, कला एवं ज्ञान-विज्ञान ४१३ शान्तिनाथरित महाकाव्य में शिक्षक की योग्यताओं की दृष्टि से कपिल एक आदर्श शिक्षक था। समस्त शास्त्रों तथा आगमों में पाण्डित्य,' अध्यापनशैली के वैशिष्ट्य तथा ग्रहातिचारादि ज्ञान के कारण कपिल अन्य अध्यापकों की तुलना में श्रेष्ठ तथा लोकप्रिय अध्यापक के रूप में वर्णित हुआ है ।२ सग्रन्थ तथा निर्गन्ध शिक्षक-जैन संस्कृत महाकाव्यों के सन्दर्भ में दो प्रकार के शिक्षकों के होने की सूचना प्राप्त होती है। ये दो प्रकार के शिक्षक थे-(१) सग्रन्थ तथा (२) निर्ग्रन्थ ।3 सग्रन्थ शिक्षक कषाय वस्त्र धारण करते थे तथा वेद वेदाङ्ग में निष्णात होते थे। इन शिक्षकों की जीविका छात्रों द्वारा दी गई दक्षिणा अथवा राजा द्वारा दिए गए वेतन से चलती थी। निर्ग्रन्थ शिक्षक मन्दिरों अथवा तपोवनों में निवास करते थे। धार्मिक तथा दार्शनिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए छात्र इनके पास विशेष रूप से जाते थे। ये मुनिवृत्ति वाले निर्ग्रन्थ अध्यापक बदले में कुछ नहीं लेते थे।४ शिक्षक-प्रशिक्षण तथा 'अपशिष्य प्रणाली' हेमचन्द्र के परिशिष्ट पर्व में शिक्षक-प्रशिक्षण से सम्बद्ध 'अग्रशिष्य प्रणाली' के अस्तित्व की सूचना मिलती है । गुरु के कुछ समयावधि तक अनुपस्थित रहने पर प्रायः कक्षा में सर्वाधिक मेधावी छात्र गुरु-पद को संभाल लेता था। परिशिष्टपर्व में वर्णित वज्र नामक शिष्य इसी प्रकार का गुरु रहा था ।५ वज्र की व्याख्यान निपुणता से सभी छात्र प्रभावित थे । मन्दबुद्धि छात्रों को भी वज्र की वाचनामों से विशेष लाभ हुअा था ।६ परिशिष्टपर्व के इस द्रष्टान्त से यह भी विदित होता है कि गरु की सफलता के मूल्यांकन का प्राधार छात्र समुदाय को प्रभावित करने पर भी बहुत कुछ निर्भर करता था । वज्र' की शिक्षण विधि आदि के विषय में गरु ने ७ १. शान्ति०, १.१२६ २. पाठनिमित्तकारणाद् ग्रहातिचारादिविबोधनादपि । -शान्ति०, १.२७ ३. नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत काव्य के विकास में०, पृ० ५५८ ४. वही, पृ० ५५८-५९ ५. यास्यामो ग्रामममुकं द्वित्राहं तत्र नः स्थितिः । वज्रो वो वाचनाचार्यो भवितेत्यादिशद् गुरुः ॥ -परि०, १२.१८१-८३ ६. येऽत्यल्पमेधसस्तेऽपि साधवोऽध्येतुमागमम् । अमोघवचनो वज्रो बभूवातिजडेष्वपि । -वही, १२.१८७, १८ .
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy