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________________ ४१० जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज गया।' इसी प्रकार वर्धमानचरित भी यज्ञोपवीत संस्कार के उपरान्त ही विद्याग्रहण का उल्लेख करता है । वादीभसिंह ने क्षत्रचूड़ामरिण में विद्यारम्भ की आयु पांचवें वर्ष को स्वीकार की है । इस आयु में बालक सर्वप्रथम 'द्विमातृका' ( वर्णमाला) को सीखता था । पार्श्वनाथचरित में भी पांच वर्ष की अवस्था को ही विद्यारम्भ की श्रायु उपयुक्त मानी गई है । प्रारम्भिक वर्णमाला तथा गरिणत ज्ञान के उपरान्त ही प्रायः बालक को विद्यालयीय ज्ञान के लिए भेजा जाता था । शिक्षा सम्बन्धी संस्कार जैन संस्कृत महाकाव्यों एवं जैन पुराणों में प्रतिपादित राजकुमारों की शिक्षा-दीक्षा सम्बन्धी वर्णनों के अनुसार विद्यार्थियों के शिक्षाकाल की अवधि में तीन संस्कार होते थे— अक्षरारम्भ संस्कार, ७ उपनयन संस्कार 5 तथा समावर्तन संस्कार | प्रथम संस्कार 'अक्षरारम्भ' के अवसर पर बालक पांच वर्ष के लगभग होता था तथा आठ वर्ष पर्यन्त वह वर्णमाला, लिविज्ञान एवं प्रारम्भिक अङ्कगणित को सीखता था। दूसरे संस्कार 'उपनयन' के अवसर पर बालक की प्राठ या नो वर्ष की आयु होती थी इस संस्कार विशेष के साथ बालक उच्चस्तरीय अध्ययन विषयों का अध्ययन करने के लिए गुरु के पास भेजा जाता था अथवा राजभवन में ही उसके अध्यापन के लिए योग्य गुरुनों की नियुक्ति की जाती थी । तदनन्तर अध्ययन की समाप्ति पर बालक का 'समावर्तन' नामक तीसरा संस्कार होता था । १० १. पार्श्व०, ५.४ २. वर्ध०, ५.२७ ३. नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत काव्य के विकास में०, पृ० ५५५ ४. निष्प्रत्यूहेष सिद्धयर्थं सिद्धपूजादिपूर्वकम् । सिद्धमातृका सिद्धामथ लेभे सरस्वतीम् ॥ — क्षत्र०, १.११२ ५. समं वयस्यैर्विनयेन तत्परो गुरूपदेशोपनतासु बुद्धिमान् । —पार्श्व०, ४.२८ ६. नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत काव्य के विकास में०, पृ० ५५६ ७. द्विस०, ३.२४, त्रिषष्टि०, १.२.६६३ ८. पार्श्व०, ५.४, द्विस०, ३.२४ ६. श्रादि०, ३८.१०६ - २०, द्विस०, ३.२४ १०. नेमिचन्द्र शास्त्री, आदि पुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० २६०-६३, तथा तु० - आदि०, ३८.१०२-८; ३८.१०६-२०
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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