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________________ ४०० जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज करते थे। व्यावहारिक दृष्टि से क्षत्रियों एवं वैश्यों के लिए इन चौदह प्रकार की विद्यानों की अधिक उपादेयता नहीं रही थी फलत: ये लोग क्रमशः युद्ध विद्या तथा व्यापार सम्बन्धी शिक्षा ग्रहण करते थे ।' ब्राह्मण वर्ग प्राचीनकाल से चली आ रही शिक्षा पद्धति से पूर्णतया सन्तुष्ट था २ शिक्षा केन्द्रों में राजकीय संरक्षण के कारण भी ब्राह्मण वर्ग का प्रभुत्व रहा था । ब्राह्मणों के शिक्षा केन्द्र एक प्रकार से धार्मिक सम्मेलन के केन्द्र बन गए थे।४ शिक्षा की तीन धाराएं सम्पूर्ण भारत में शिक्षा का प्रसार तीन धारामों में हुआ है। इनमें से ब्राह्मण संस्कृति की धारा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं अधिकांश भारत के भू-भाग में राष्ट्रीय शिक्षा पद्धति के रूप में प्रचलित थी। शेष दो शैक्षिक धारामों का सम्बन्ध बौद्ध संस्कृति तथा जैन संस्कृति के अपने अपने सम्प्रदायों से था। ह्वेनत्साङ्ग के उल्लेखानुसार बौद्ध धर्मानुयायी बालकों की शिक्षण विधि ब्राह्मण एवं जैन संस्कृति की शिक्षण विधि से भिन्न थी। बौद्ध लोग ६ वर्ष की अवस्था में 'सिद्धम्' नामक पुस्तक द्वारा शिक्षा प्रारम्भ करवाते थे तदनन्तर उन्हें (१) व्याकरण (२) शिल्प स्थान (३) चिकित्सा (४) तर्क तथा (५) अध्यात्मविद्या में निपुण होना पड़ता था ।५ बौद्धों की अध्यात्म विद्या के अन्तर्गत बौद्ध दर्शनशास्त्र तथा त्रिपिटकादि ग्रन्थों की शिक्षा सम्मिलित थी।६ बौद्ध शिक्षा पद्धति सत्यान्वेषण, तथ्यस्थापना, तर्क, समीक्षात्मक पर्यवेक्षण, चिन्तन तथा मनन पर विशेष बल देती थी। जैन संस्कृति से सम्बद्ध शैक्षिक धारा के प्रमाण जैन पुराणों आदि में प्राप्त होते हैं । जैन परम्परा के अनुसार बालक को सर्वप्रथम लिपिज्ञान से परिचित कराया जाता था तदनन्तर उसे 'दिव्यसिंहासनभागी भव', 'विजयसिंहासनभागी भव' 'परमसिंहासनभागी भव' आदि तीन मन्त्रों का उच्चारण करना पड़ता था । संस्कार १. Sharma, Dashratha, Rajasthan Through the Ages, p. 513-14 २. अल्तेकर, प्राचोन भारतीय शिक्षण पद्धति, पृ० ११५-१६ ३. Thapar, Romila, A History of India, Vol, I, p. 252 ४. वही, पृ० २५३-५४ lookerji, Radha Kumud, Ancient Indian Education, Delhi, 1947, p. 328 ६. वही, पृ० ५२८-३० ७. जयशङ्कर मिश्र, प्राचीन भारत का सामाजिक इतिहास, वाराणसी, १९७४ पृ० ५१७ ८. नेमिचन्द्र शास्त्री, प्रादिपुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० २६०-६१
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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