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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज था । महाकाव्य युगीन जैन दर्शन खण्डन-मण्डन की विशेष प्रवृत्तियों से अनुप्रेरित है । मध्यकालीन दार्शनिक जगत् में सामन्तवादी भोग विलास को सैद्धान्तिक मूल्य प्रदान करने की ओर भी बुद्धिजीवियों के एक वर्ग द्वारा विशेष प्रयत्न किया जा रहा था। चार्वाक दर्शन की मूल प्रेरणामों से प्रभावित मायावाद, तत्त्वोपप्लववाद, भूतवाद आदि अनेक दार्शनिक मान्यताएं भौतिक मूल्यों की अपेक्षा से ही समाज पर हावी होती जा रही थीं। इन भौतिक दर्शनों ने इतने तीक्ष्ण एवं प्रभावशाली तर्क विकसित कर लिए थे जिनके द्वारा आध्यात्मिक मूल्यों पर टिके दार्शनिक सम्प्रदायों की तत्त्वमीमांसा को छिन्न-भिन्न करना सहज हो चुका था। जैन महाकाव्यों के साक्ष्य इन लोकायतिक दार्शनिक वादों के सम्बन्ध में भी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।