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________________ धार्मिक जन-जीवन एवं दार्शनिक मान्यताएँ ३६५ मन्थन से भी संभव है।' इस वाद को 'स्वभाववाद' अथवा 'नियतिवाद' से प्राय: अभिन्न माना जाता है । वराङ्गचरित में सृष्टिविषयक वाद के रूप में इसका उल्लेख प्राया है । ५. सांख्याभिमत सत्कार्यवाद सांख्यदर्शनानुसारी सत्कार्यवाद के अनुसार यह स्वीकार किया जाता है कि जैसा कारण होता है उससे वैसा ही कार्य उत्पन्न होगा | 3 सांख्यदर्शन के इस वाद के सन्दर्भ में जटासिंह नन्दि का प्राक्षेप है कि अव्यक्त प्रकृति से संसार के समस्त व्यक्त एवं मूर्तिमान पदार्थ कैसे उत्पन्न हो सकेंगे ? ४ सांख्यों के अनुसार जीव को 'कर्ता' कहा गया है, वह भी अनुचित है । वीरनन्दि कृत चन्द्रप्रभचरित में इसका खण्डन करते हुए कहा गया है कि जीव को अकर्त्ता मान लेने पर उस पर कर्मबन्ध का भी अभाव रहेगा तथा उसके पाप-पुण्य भी नहीं हो सकेंगे । बन्ध के न होने पर मोक्ष भी संभव नहीं । चन्द्रप्रभकार का कहना है कि कपिल मत में आत्मा को भोक्ता कहकर उसे भुक्ति क्रिया का कर्त्ता तो मान लिया गया है परन्तु उसके कर्तृव को छिपाने की चेष्टा भी की गई है, जो अनुचित है । वीरनन्दि के अनुसार प्रधान प्रकृति के बन्ध होने की जिस मान्यता का सांख्य समर्थन करता है, वह भी प्रयुक्तिसङ्गत है क्योंकि सांख्य दर्शन में प्रकृति अचेतन मानी गई है १. ते ह्य ेवमाहु: : - न खलु प्रतिनियतो वस्तूनां कार्यकारणभावस्तथा प्रमाणेनाग्रहणात् । तथाहि - शालूकादपि जायते शालूको गोमयादपि जायते शालूकः । वह्न रपि जायते वह्निररणिकाष्ठादपि । - षड्दर्शन०, १ पर गुणरत्न टीका, पृ० २३ वराङ्ग०, २६.७२ २. ३. असदकरणादुपादानग्रहणात्सर्वसंभवाभावात् । शक्तस्य शक्यकरणात्कारणभावाच्च सत्कार्यम् ।। - सांख्यकारिका, & ४. प्रकृतिर्महदादि माव्यते चेत्कथमव्यक्ततमान्नु मूर्तिमत्स्यात् । इह कारणतो नु कार्यमिष्टं किमु दृष्टान्तविरुद्धतां न याति ॥ t ५. न चाप्यकर्तता तस्य बन्धाभावादिदोषतः । कथं ह्यकुर्वन्ध्येत कुशलाकुशल क्रियाः ॥ मुक्तिक्रियाया: कर्तृत्वं भोक्तात्मेति स्वयं वदन् । तदेवापह्नवानः सन्किं न जिह्रेति कापिलः ।। — वराङ्ग०, २४.४३ - चन्द्र०, २.८१ —बही, २.८२
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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