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________________ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज फलतः प्रचेतन का न तो बन्ध संभव है और न ही मोक्ष ।' इस प्रकार वराङ्गचरित और चन्द्र प्रभचरित में सांख्याभिमत तत्त्व व्यवस्था को अयुक्तिसङ्गत सिद्ध किया गया है। ६. मीमांसाभिमत सर्वज्ञवाद चन्द्रप्रभचरित के अनुसार मीमांसादर्शन में जीवाजीव आदि छह पदार्थ ही स्वीकार किए गए हैं । 'स्वर्ग' के अस्तित्व को स्वीकार कर लेने के कारण मीमांसक 'मोक्ष' को पदार्थ स्वीकार नहीं करते हैं । २ जयन्तविजय में 'सर्वज्ञवाद' नामक दार्शनिक सिद्धान्त की चर्चा आई है। इसी प्रसङ्ग में मीमांसकों के पक्ष को भी स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि प्रत्यक्ष, अनुमान, पागम, उपमान तथा अर्थापत्ति इन पाँचों प्रमाणों द्वारा अग्राह्य होने के कारण 'सर्वज्ञ' की सिद्धि असम्भव है। सर्वज्ञसिद्धि के खण्डन में जो तर्क दिए गए हैं, वे इस प्रकार हैं : १. चक्षु-इन्द्रिय से जैसे रमणियों का रूप दर्शन, श्रवणेन्द्रिय से जैसे गायन-वादन, रसनेन्द्रिय से जैसे अधरामृत-स्वाद, घ्राणेन्द्रिय से जैसे चन्दनादि सुगन्धित पदार्थ, स्पर्शेन्द्रिय से जैसे रमणी के अङ्गों का आह्लाद आदि ग्राह्य होता है वैसे पंचेन्द्रिय प्रत्यक्ष द्वारा 'सर्वज्ञ' का ग्रहण नहीं किया जा सकता ।५ २. साध्य धर्मों से युक्त लिङ्ग द्वारा लिङ्गी का ज्ञान होता है किन्तु 'सर्वज्ञ' के सद्भाव का अविनाभावी न तो स्वभाव-लिङ्ग ही दृष्टिगोचर होता और न कार्य-लिङ्ग ही। 'सर्वज्ञ' का स्वभाव-लिङ्ग तथा कार्य-लिङ्ग ही अनिश्चित है अतएव अनुमान प्रमाण से भी वह अग्राह्य है। ३. गौ सदृश गवय की उपलब्धि होने से ही उपमान द्वारा १. अचेतनस्य बन्धादिः प्रधानस्याप्ययुक्तिकः । तस्मादकता पापादपि पापीयसी मता ।। -चन्द्र०, २.८३ २. जीवाजीवादिषड्वर्ग प्रतिपद्यापरे पुनः । मोक्षे विप्रतिपद्यन्ते मीमांसापक्षपातिनः ।। -वही, २.६० ३. जयन्त १५.१५-६२ । ४. सर्वज्ञो नास्ति यद्ग्राह्यः प्रमाणः पञ्चभिर्न सः । यदेवं तद्भवेदेवं यथा व्योमसरोरुहम् ॥ -वही, १५.१७ प्रमाणपञ्चकाभावोऽप्यखिलज्ञं न बाधते । -चन्द्र०, २.१०७ ५. जयन्त०, १५.१८-२३ ६. लिङ्गन लिङ्गयते लिङ्गी साध्यधर्मविभूषितः । अविनाभावसम्बन्धं सम्बन्धेन च नात्र तत् ॥ -वही, १५.२४
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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