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________________ धार्मिक जन-जीवन एवं दार्शनिक मान्यताएँ ३८६ जीव आदि छह द्रव्यों में 'काल' के कारण 'जीव' तथा 'पुद्गल' का ही परिणमन होता है तथा शेष 'धर्म', 'अधर्म', 'प्राकाश' आदि का कोई परिणमन नहीं होता।' इन छह द्रव्यों में केवल 'जीव' ही चेतन है शेष 'अजीव' अर्थात् अचेतन हैं। इसी प्रकार केवल पुद्गल द्रव्य मूर्तिक है अन्य प्रमूर्तिक होते है। युद्गल द्रध्य की यह भी विशेषता मानी गई है कि यह 'कार्य' भी होता है तथा दूसरों का कारण' भी बनता है । किन्तु शेष जीव, धर्म, अधर्म, आकाश, तथा काल ये पांचों द्रव्य ‘कारण' ही होते हैं, किसी के 'कार्य' नहीं बन सकते । 3 'पुद्गल' द्रव्य कर्ता की अपेक्षा करता है तथा स्वयं भी कत्र्तृत्ववान होता है, किन्तु शेष पांचों द्रव्यों में कोई भी किसी अन्य द्रव्य का कर्ता नहीं होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि जटासिंह नन्दि ने पुद्गल के स्वरूप का विस्तार से भेदसहित विवेचन ही नहीं किया बल्कि अन्य द्रव्यों के साथ उसके अन्तर को भी स्पष्ट करने का प्रयास किया है। ३. प्राश्रव कर्मों के आने का द्वार 'पाश्रव' कहलाता है। यह मन, वचन तथा शरीर के योग से होता है। योग जीव की एक शक्ति विशेष मानी जाती है। अभिप्राय यह है कि हम मन के द्वारा जो कुछ सोचते हैं, वचन के द्वारा जो कुछ बोलते हैं तथा शरीर के द्वारा जो क्रियाएं करते हैं, उनसे 'कार्माण वर्गणाएं' प्रात्मा में सूचित होती जाती हैं ।६ परिणामत: शुभ योग 'पुण्याश्रव' तथा अशुभ योग 'पापासव' का कारण बनता जाता है । इस 'पाश्रव' के 'सकषाय जीव' तथा 'प्रकषाय जीव' -दो स्वामी हैं । पाश्रव ही संसार का मूल कारण है। १. जीवाश्च पुद्गलाश्चैव परिणामगुणान्विताः । परिणामं न गच्छन्ति शेषाणीति विदुर्बुधाः ॥ -वराङ्ग०, २६.३५ २. जीवद्रव्यं हि जीवः स्याच्छेषं निर्जीव उच्यते । ___मूर्तिमत्पुद्गलद्रव्यममूर्तं शेषमिष्यते । -वही, २६.३६ ३. वही, २६.४३ ४. वही, २६.४४ ५. कर्मणामागमद्वारमाश्रवं संप्रचक्षते । स कायवाङ्मन: कर्मयोगत्वेन व्यवस्थितः ।। -चन्द्र०, १८.८२, तथा धर्म०, २१.१२०, नेमि०, १५.७५ ६. नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत काव्य के विकास में, पृ० ६३१ ७. चन्द्र०, १८८३ आश्रवः संसृतेमू लम् । -धर्म०, २१.१२० तथा स हि निःशेषसंसारनाटकारम्भसूत्रभत् । -नेमि०. १५.७५
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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