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________________ ३८८ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज समाविष्ट हैं जिनकी तन्वाकृति होती है तथा जो 'छेदन' अथवा 'पेषण' द्वारा निष्पन्न होते हैं। ३. स्थूल-सूक्ष्म'-इसके अन्तर्गत चक्षुग्राह्य किन्तु स्पर्शेन्द्रिय द्वारा अग्राह्य पदार्थ अन्तर्भूत हैं, जैसे छाया, धूप, अन्धकार, चांदनी इत्यादि । ४. सूक्ष्म-स्थूल २ - इसके अन्तर्गत अचाग्राह्य किन्तु अन्य इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य वस्तुएं आदि सम्मिलित हैं, जैसे शब्द, स्पर्श, रस, गन्ध, शीत, उष्ण, वायु आदि। ५. सूक्ष्म ---इसके अन्तर्गत 'वैक्रियक', 'प्रौदारिक' आदि पंचविध शरीर तथा मन एवं बुद्धि की 'वर्गणाएं' और साथ ही उनके अन्दर अनन्तानन्त संख्या में व्याप्त 'अान्तरिक वर्गणाएं' संघात रूप से समाविष्ट हैं। ___६. सूक्ष्म-सूक्ष्म ४ - इसके अन्तर्गत सूक्ष्मातिसूक्ष्म 'पुद्गल' की स्थिति मानी गई है जिसे 'परमाणु' कहा जाता है । इनकी उल्लेखनीय विशेषता यह रहती है कि ये संधात रूप से नहीं अपितु परस्पर बिखरे रूप में होते हैं । __ वराङ्गचरितकार ने 'पुद्गल' द्रव्य के विषय में यह भी कहा है कि यह 'एकक्षेत्रावगाही' भी है और 'अनेकक्षेत्रावगाही' भी, जबकि धर्म, अधर्म, आकाश, तथा जीव 'अनेकक्षेत्री' हैं। 'काल' केवल एक 'क्षेत्र' में ही रह सकता है।५ 'पुद्गल' तथा शरीरी जीव 'नित्य' तथा 'अनित्य' दोनों होते हैं । ६ । १. चक्षुर्विषयमागम्य ग्रहीतुं यन्न शक्यते । च्छायातपतमोज्योत्स्नं स्थूलसूक्ष्मं च तद्भवेत् ॥ -वराङ्ग०, २६.१८ २. शब्दस्पर्शरसो गन्धः शीतोष्णे वायुरेव च । प्रचक्षुर्ग्राह्यभावेन सूक्ष्मस्थूलं तु तादृशम् ।। -वही, २६.१६ पञ्चानां वैक्रियादीनां शरीराणां यथाक्रमम् । मनसश्चापि वाचश्च वर्गणा याः प्रकीर्तिताः ।। तासामन्तरवर्तिन्यो वर्गणा या व्यवस्थिताः । ता: सूक्ष्मा इति विज्ञेया अनन्तानन्तसंहताः ॥ -वही, २६.२०-२१ ४. असंयुक्तास्त्वसंबद्धा एकैकाः परमाणवः । तेषां नाम समुद्दिष्टं सूक्ष्मसूक्ष्मं तु तद्बुधैः ।। -वही, २६.२२ ५. वही, २६.३७ ६. पुद्गना जीवकायाश्च नित्यानित्या इति स्मृताः । -वही, २६.४१
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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