________________
धार्मिक जन-जीवन एवं दार्शनिक मान्यताएँ
३८७ 'मुहूर्त', 'दिन', 'रात' प्रादि सूक्ष्म भेद भी किए गए हैं। इसी प्रकार पक्ष, मास, ऋतु, वर्ष, युग प्रादि भी काल की अन्य पर्याएं होती हैं। पांचवें द्रव्य 'आकाश' की 'सर्व-व्यापकता' एवं 'अवगाहनता' विशेषता है ।२ वराङ्गचरित में केवल 'प्राकाश' को ही व्यापक द्रव्य बताया गया है शेष पांच द्रव्य अव्यापि हैं । 3 नेमिनिर्वाण महाकाव्य में 'प्राकाश' तथा 'काल' दोनों के 'व्यापकत्व' के वैशिष्ट्य को स्वीकार करते हुए इन्हें 'अनश्वर' माना गया है। इसके विपरीत वराङ्गचरितकार 'काल' को 'अनित्य' मानते हुए उसमें 'व्यापकत्व' का भी सर्वथा प्रभाव मानते हैं ।
पुद्गल षड्विध
'अजीव' तत्त्व का पांचवा भेद 'पुद्गल' अथवा 'अणु' कहा गया है। 'पुद्गल' सूक्ष्म परमाणुषों की ही संज्ञा है जिसे 'वर्गणा' भी कहा जाता है। चन्द्रप्रभ महाकाव्य में रूप, रस, गन्ध, स्पर्श तथा शब्द को भी 'पुद्गल' संज्ञा दी गई है। वराङ्गचरित महाकाव्य में पुद्गल के निम्नलिखित छह भेद विस्तार से वरिणत
१. स्थूल-स्थूल-इसके अन्तर्गत पृथिवी सहित पर्वत, वन, मेघ, विमान, भवन प्रादि कृत्रिम तथा प्रकृत्रिम पदार्थ पाते हैं ।
२. स्थूल-इसके अन्तर्गत तेल, घी, दूध, पानी आदि ऐसे तरल पदार्थ
१. वराङ्ग०, २६ २८ २. वराङ्ग०, २६.३१, चन्द्र०, १८.७२ ३. वराङ्ग० २६.४२ ४. जगतो व्यापकावेतौ कालाकाशावनश्वरौ । -नेमि०, १५.७१ ५. कालद्रव्यमनित्यं तन्नित्यान्येवेतराणि च । -वराङ्ग०, २६.४१ ६ रूपगन्धरसस्पर्शः शब्दवान् पुद्गलः स्मृतः । -चन्द्र०, १८.७६ ७. षट्प्रकारविभक्तं तत्पुद्गलद्रव्यमिष्यते । -वराङ्ग०, २६.१४ ८. भूम्यद्रिवनजीमूतविमानभवनादयः । कृत्रिमाकृत्रिमद्रव्यं स्थूलस्थूलमुदाहृतम् ॥
-वही, २६.१६ ६. तनुत्वद्रव्यभावाच्च छेद्यमानानुबन्धि यत् । तैलोदकरसक्षीरघृतादि स्थूलमुख्यते ।।
-वही, २६.१७