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________________ धार्मिक जन-जीवन एवं दार्शनिक मान्यताएँ कराया जाता था।' साध्वियां तीन, पांच, छह, आठ दिनों, पक्ष, चार मास, छहमास आदि समयावधि के विभिन्न उपवास भी करती थीं । प्रायः फटे-पुराने वस्त्रों को धारण करती थीं। साध्वियों तथा मुनियों की तपस्चर्या में किसी विशेष प्रकार का भेद दृष्टिगत नहीं हुआ है। साध्वियां भी मुनियों की भाँति विभिन्न प्रकार के ऋतु-आदि काय-क्लेश तपों की साधना करती थीं।४ नगरों में अथवा वनों आदि निर्जन स्थानों में भी साध्वियों को मानापमान की दृष्टि से तुल्य-माव वणित किया गया है।५ राजानों द्वारा मुनिधर्म स्वीकार कर लेने की स्थिति में कभी कभी उनकी रानियां भी पार्यिका धर्म में दीक्षित हो जाती थीं। वराङ्गचरित महाकाव्य में राजा वराङ्ग की रानियों का साध्वियां बनकर तपश्चर्या करने का उल्लेख पाया है। ६. ब्राह्मणधर्म को युमोन प्रवृत्तियां यज्ञानुष्ठान जैन महाकाव्य मूलत: जैन धर्मावलम्बी होने के कारण आलोच्य युग में ब्राह्मण व्यवस्था के सम्बन्ध में यद्यपि इनसे पर्याप्त सूचनाएं प्राप्त नहीं होतीं तथापि कतिपय महाकाव्यों के आधार पर ज्ञात होता है कि इस व्यवस्था का समाज पर प्रभावशाली नियन्त्रण था । आलोच्य काल में ब्राह्मण धर्म पूर्णतया पौराणिक मान्यताओं से प्रभावित हो चुका था तथापि प्राचीनकाल से चले आ रहे वैदिक कर्मकाण्डों की भी लोकप्रियता कम नहीं थी। हेमचन्द्र जैसे जैन प्राचार्यों ने ब्राह्मणव्यवस्था से सम्बद्ध धार्मिक गतिविधियों का निष्पक्ष रूप से चित्रण किया है। .हेमचन्द्राचार्यकृत द्वयाश्रय आदि महाकाव्यों से यह भी ज्ञात होता है कि १२-१३वीं शताब्दी में गुजरात जैसे जैन-धर्म से प्रभावित क्षेत्र में भी वैदिक यज्ञों आदि का १. आचारसूत्राङ्गनयप्रभङ्गानाधीयते स्माल्पतमैरहोभिः । -वराङ्ग०, ३१.७ २. उपोष्य पञ्चत्रिषडष्टरात्रं पक्षश्च मासानपि षट्चतुष्कान् । -वही ३१.१२ ३. विशीर्णवस्त्रावृतगात्रयष्टयः ।। -वही, ३१.१३ ४. वही, ३१ १६ ५. पुरे वनेऽरातिजने जने वा मानापमानादिषु तुल्यभावाः । वही, ३१.१४ ६. वही, ३१.११३ । Narang, Dvayāśraya, pp. 226-27
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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