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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
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अनुष्ठान होता था । द्वयाश्रय महाकाव्य में 'अष्टाकपाल' " ( पुरोडाश) , याज्ञिक पात्र, तुरायण तथा अग्निष्टोम यज्ञ, ४ शुष्क गोमय होम, होता आदि वैदिक कर्मकाण्डों की संज्ञाओं एवं अनुष्ठान विधियों का उल्लेख आया है । जयसिंह तथा अन्य चालुक्य राजा यज्ञों का भी सम्पादन करवाते । इसी प्रकार हम्मीर महाकाव्य में हम्मीर द्वारा वैदिक विधि से 'कोटि महायज्ञ' करने का उल्लेख प्राया है । ७ बराङ्गचरित महाकाव्य के आधार पर भी यह ज्ञात होता है कि शत्रुनाश, स्वर्गकामना, आयुवृद्धि, रोगतिनाश, बलवृद्धि, एवं शरीररक्षा हेतु जनसाधारण में वैदिक यज्ञानुष्ठानों का विशेष प्रचलन था। 5 विवाहावसरों पर भी यज्ञानुष्ठान होते थे । पुरोहित वर्ग बड़ी शुद्धता तथा स्वच्छता से हवन सामग्री बनाते थे तथा उच्च वेद-स्वर सहित हवन कुण्ड में हवि समर्पित की जाती थी । १० वराङ्गचरित के उल्लेखानुसार संभवतः इस अवसर पर पशु बलि का भी विधान
" । ईक्षुरस, दूध, दधि, जल आदि से पूर्ण कुम्भ ब्राह्मणों को दक्षिणा के रूप में मिलते थे । धन, नाना वस्त्र, भोजन, आदि वस्तुएं भी दानस्वरूप प्रा होतीं थीं । १३
बलिप्रथा
यज्ञानुष्ठानों तथा विभिन्न देवियों के मन्दिरों में बलि चढ़ाने की कुधार्मिक मान्यताएं भी समाज में प्रचलित थीं । आठवीं शताब्दी ई० के यशोधरचरित श्रादि महाकाव्यों से पुष्टि होती है कि बकरे, मुर्गे, हिरण, सूर, प्रादि विभिन्न पशुओं
द्वया०, ६.६० २ . वही, ८ १४, १५
३. वही, १७.५६
४. वही, १७.५८
५. वही, ४.३२
६. वही, ६.३२
'७. वही, १.४४, २.४६, हम्मीर०, ६.८५.६०
८.
कर्माणि यान्यत्र हि वैदिकानि रिपुप्रणाशाय सुखप्रदानि । श्रायुर्बलारोग्यवपुः कराणि दृष्टारिण वैयर्थ्यमुपागतानि ॥
६. वही, २५.३४, ३६
- वराङ्ग०, २५.३७
१०.
१९. वही, २४.२५-२६
१२. द्वया०, १.८७, वराङ्ग०, २५.२६
सुमन्त्रपूताम्बुहताग्निसाक्ष्यः । - वराङ्ग०, २५.३८ तथा २४.२५