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________________ ३६६ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज जैन मुनियों की एक महत्त्वपूर्ण चर्या रही है। मुनियों द्वारा इस प्रकार के विहार करने से दो कार्य सिद्ध हो सकते थे एक तो जैन धर्म की प्रभावना होती थी तथा दूसरे तप में वृद्धि । मुनियों द्वारा दिए गए धर्मोपदेश के श्रवण के लिए राजा सहित समग्र प्रजा लालायित रहती थी। जब कभी भी मुनियों का संघ नगरोद्यान में प्रवेश करता था तो वहुत अधिक संख्या में लोग उपदेश श्रवण के लिए उपस्थित रहते थे । इस प्रकार सार्वजनिक रूप से दिए गए जैन मुनियों के धर्मोपदेशों के प्रति तत्कालीन जनमानस बहुत अधिक प्रास्थावान् रहा था। इस सम्बन्ध में हेमचन्द्रसूरि "के धर्मोपदेश द्वारा राजा कुमारपाल में धर्मानुरक्ति उत्पन्न होने का निदर्शन एक ऐतिहासिक घटना है। दक्षिण भारत में मन्दिरों के निर्माण तथा जैन धर्म के प्रचार व प्रसार का सर्वाधिक श्रेय भी जैन मुनियों की प्रभावशाली धर्मं प्रभावना को ही जाता है । वराङ्गचरित के उल्लेखानुसार मुनिवृत्ति में विशेष परिपक्व तथा समस्त विद्यमों में पारङ्गत मुनि हो देशविहार तथा धर्मोपदेश देने के अधिकारी थे । वराङ्ग तथा अन्य मुनियों द्वारा सम्पूर्ण तपों, व्रतों तथा योगों आदि की साधना करने के उपरान्त ही नगरों, खेडों, गाँवों, प्राकरों आदि में जाकर • धर्मविहार करने का उल्लेख आया है ।।४ दूरस्थ गांवों एवं अर्द्धविकसित आवासीय संस्थियों में जाकर जैन धर्म का लोकाधार सुदृढ़ करने की दिशा में भी जैन मुनियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी । साध्वियों की तपश्चर्या· वराङ्गचरित में साध्वियों के तपोमय जीवन का भी उल्लेख आया है । प्रायः ये प्रार्थिकाएं अथवा साध्वियां मुनियों के अधीन होतीं थीं । प्रत्येक आर्यिका गरण (संघ) के ऊपर एक प्रधान श्रायिका होती थी जो सभी श्राविकाओं को धार्मिक शिक्षा प्रादि देकर उनके उचित मार्ग निर्देशन के दायित्व को वहन करती थी। संघ में शिक्षा-दीक्षा आदि पर विशेष ध्यान दिया जाता था । प्रायिकाओं की v १. वराङ्ग०, ३.१४-१६, प्रद्यु०, ६.२६-३० २. द्रष्टव्य, प्रस्तुत ग्रन्थ, पृ० ३३० ३. वराङ्ग०, ३१.५०-५४ ४. वही, ३१.५५ वराङ्ग०, ३११-१५ ५. १६. तपोधनानाममितप्रभावा गणाग्री संयमनायिका सा । तथा ३१.७ T - वराङ्ग०, ३१.६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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