________________
धार्मिक जन जीवन एवं दार्शनिक मान्यताएं
३५३
१
तथा मङ्गल- गानों से उनका अभिनन्दन करते हैं ।' सुन्दर अप्सराएं उनके समक्ष नृत्य करती हैं तथा सङ्गीत आदि से उनका मनोरञ्जन करतीं हैं । २ स्वर्गस्थ देवों को मनोवांछित बस्तुएं प्राप्त रहती हैं तथा देवांगनाओं के साथ वे नित्य विहार करते हैं । 3 इनमें यह बोध होता है कि स्वर्ग सुख की प्राप्ति उन्हें दयाभाव, दान, इन्द्रिय-दमन, ब्रह्मचर्यव्रत, जिनेन्द्र-पूजा आदि कर्मों के परिणामस्वरूप ही हुई है । ४
स्वर्गलोकवासी देव विमानों में बैठकर स्वर्गलोक में विचरण करते हैं । शक्ति की दृष्टि से देव वहुत पराक्रमी होते हैं। ये चाहें तो सुमेरु पर्वत को उखाड़ फेंके, सारी पृथ्वी को एक हाथ से उठा दें तथा एक ही झटके से सूर्य-चन्द्र को पृथ्वी पर गिरा दें । ६ स्वभाव से ही देवताओं का शरीर सुन्दर तथा सूर्य के समान तेजस्वी होता है । ७ उनके शरीर से मधुर सुगन्ध आती रहती है। जन्म से ही वे परिपुष्ट तथा सुन्दराकृति होते हैं तथा कभी भी उनमें शारीरिक हास या विकार नहीं आता। उनके बाल सुन्दर, घुंघराले तथा नीले वर्ण के होते हैं । १० उनके शरीर में हड्डी नहीं होती । किसी भी देव को न ही रज-शुक्र स्राव ही होता
१. प्रजायमानान्सहसा समीक्ष्य समुङ्गलाविष्कृतपुण्यघोषाः । प्रस्फोटिताः क्ष्वेणित मुष्टिनादाः कुर्वन्ति देवा मुदिता नमन्तः ।।
२. नृत्यन्ति तत्राप्सरसो वराङ्गयो वीणाः सलीलं परिवादयन्ति ।
६. उत्पाटयेयुः स्वभुजेन मेरुं महीं कराग्रेण प्रादित्यचन्द्रावपि पातयेयुर्महोदधि चापि
- वराङ्ग, ६ ३६
३. ऐश्वर्ययोगद्धविशेषयुक्ताः प्रियासहाया विहरन्ति नित्यम् ।
४. दयातपोदानदमार्जवस्य
सद्ब्रह्मचर्यव्रतपालनस्य ।
जिनेन्द्र पूजाभिरतेर्विपाकोऽप्ययं स इत्येव विबोधयन्ति । - वही, ६.४२ ५. नभश्चरा यानविमानयाना अन्नभोगा दिविजा रमन्ते ।
- वही, ६.४८
- वही, ६.४०
७.
स्वभावतो बालदिवाकराभाः । वही, ६.४३ ८. स्वभावतो दिव्य सुगन्धिगन्धाः । - वही, ६.४३ ६. वही, ६.४४
१०. समुल्लसत्कुञ्चितनील केशाः । - वही, ६.४६
समृद्धरेयुः । विशोषयेयुः ।।
वही, ६.४१
वही, ६.४८