SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 388
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५४ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज है और न किसी प्रकार का पसीना आदि ही आता है ।' वे कभी सोते नहीं और न कभी पलकें झपकाते हैं । २ अनेक प्रकार के रोगों तथा जरा आदि अवस्थाओं से वे सदा बचे रहते हैं। विभिन्न स्वर्गों में देवों की आयु पृथक्-पृथक् मानी गई है। जैन देवियों का स्वरूप जैन देवत्व की शास्त्रीय परिकल्पनामों में देवियों की विलासपूर्ण गतिविधियों का विशेष वर्णन पाया है। विभिन्न प्रकार के देववर्गों में तदनुसारी देवियों की भी स्थिति रही थी। मुख्यतः जैन देवियों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-१. प्रासाद देवियां, २. कुल देवियां तथा ३. सम्प्रदाय देवियां ।५ जैन देव पूजा के अन्तर्गत तीर्थङ्करों के साथ-साथ देवियों की भी पूजा की जाती है जिनमें सरस्वती, अम्बिका, पद्मावती प्रादि का महत्त्वपूर्ण स्थान है।' इनके अतिरिक्त ज्वालामालिनी, सिद्धिदायिका (यक्षिणी), महाकाली, चक्रेश्वरी, श्री, लक्ष्मी, शान्ति देवी आदि देवियों के पूजा होने की ऐतिहासिक पुष्टि विभिन्न प्रान्तों से प्राप्त जैन देवी-मूर्तियों से होती है । इस प्रकार धार्मिक दृष्टि से जैनधर्म में देवी पूजा का महत्त्व रहा था। __जैन देवी-तत्त्व की कल्पना जैन देवशास्त्र की एक निराली कल्पना है । जैन धर्म ग्रन्थों में देवगति नामक कर्म के उदय होने पर नाना प्रकार की विभूतियों से विशिष्ट द्वीप समुद्रादि में स्वेच्छानुसार विहार करना 'देवत्व' माना गया है । पंचसंग्रह के अनुसार दिव्यभावयुक्त अणिमादि पाठ गुणों से नृत्य-क्रीड़ा आदि करना १. अनस्थिकायास्त्वरजोऽम्बराश्च सर्वे सुराः स्वेदरजोविहीनाः । -वराङ्ग, ६.४६ २. अपेतनिद्राक्षिनिमेषशोकाः । -वही, ६.४७ ३. प्रा जन्मनस्ते स्थिरयौवनाश्च । -वही, ६.४४ तथा जरारुजाक्लेशशतविहीनाः । ----वही, ६.४६ ४. वही, ६.५५-६० ५. द्रष्टव्य, प्रस्तुत ग्रन्थ, पृ० ३३८-३३६ ६. पुष्पेन्द्र कुमार शर्मा, जैन धर्म में देवियों का स्वरूप (निबन्ध), प्रास्था और चिन्तन, प्राचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ, जैन इतिहास कला और संस्कृति-खण्ड, पृ० १५४ ७. वही, पृ० १५३-१५७
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy