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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
देवी पूजा
देवी पूजा का जैन धर्म में प्रचलन रहा था। पौराणिक जैन महाकाव्यों में श्री, ह्री, धृति लवणा, बला, कोति, लक्ष्मी, सरस्वती आदि देवलोक की देवियों का उल्लेख आया है, ऐतिहासिक महाकाव्य कीर्तिकौमुदी में देवी एकल्लवीरा की वस्तुपाल द्वारा पूजा करने का वर्णन पाया है । एकल्लवीरा देवी की आराधना फल, पुष्प आदि द्वारा की जाती थी। इस अवसर पर किसी भी प्रकार की बलि आदि देने का कोई उल्लेख नहीं मिलता। द्वयाश्रय महाकाव्य में लक्ष्मी, उमा, दुर्गा, चण्डिका, निम्बजा, स्रोतदेवी, पीठदेवी, की आराधना करने के उल्लेख पाए हैं। 3 इन देवियों को मन्दिरों में स्थापित किया जाता था।४ द्वया० के टीकाकारों ने अमृता. ब्राह्मणी सिद्ध माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, चामुण्डा, ऐन्द्री, कालसंकर्षिणी प्रादि देवियों का उल्लेख करते हुए देवी की विभिन्न शक्तियों की ओर भी प्रकाश डाला है ।५ देवशास्त्रीय दृष्टि से छठी-सातवीं शताब्दी के उपरान्त पूजी जाने वाली जैन देवियाँ मुख्यतया तीन भागों में विभक्त थीं-(१) प्रासाद देवियां (२) कुल देवियां, तथा (३) सम्प्रदाय देवियां । सामान्यतया जैन समाज में अम्बिका, ज्वालामालिनी सिद्धिदायिका (यक्षिणी), पद्मावती, चक्रेश्वरी, काली, भद्रकाली, मुकुटी, तारा, गौरी, सरस्वती, त्रिपुरा प्रादि देवियों की पूजा भी प्रचलित थी। इनकी पूजा होने के तथ्यों की पुष्टि या तो जैन शास्त्रों
१. श्रीह्रींघृतिश्च लवणा च बला च कीर्तिलक्ष्मीश्च ।
-वधं० १७.५० २. एकल्लवीरां प्रददर्श देवीम् । –कीर्ति० ६.५५ ३. द्वया०, ३.८५, ६.१०६, ५.८, ११.८८, ८.४१, ७.८३, ४.४६ ४ विशेष द्रष्टव्य-पाद टि० ६ ५. वही, पृ० २३०-३१ ६. 'तत्र देव्यस्त्रिधा प्रासाददेव्यः सम्प्रदायदेव्य: कुलदेव्यश्च । प्रासाददेव्य:
पीठोपपीठष गुह्यस्थिता भूमिस्थिता प्रासादस्थिता लिङ्गरूपा वा स्वयम्भूतरूपा वा मनुष्यनिर्मितरूपा वा सम्प्रदायदेव्य: अम्बासरस्वतीत्रिपुराताराप्रभृतयो गुरूपदिष्टमन्त्रोपासनीयाः। कुलदेव्यः चण्डीचामुण्डाकन्टेश्वरीव्याधराजी प्रभृतयः ॥' [प्राचारदिनकरप्रणीत प्रतिष्ठाविधि]-पुष्पेन्द्र कुमार, जैन धर्म में देवियों का स्वरूप, [निबन्ध], 'महावीर परिनिर्वाणस्मृति ग्रन्थः' प्रधान सम्पादक डा० मण्डनमिश्र, दिल्ली, १९७५, पृ० १३३