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________________ धार्मिक जन-जीवन एवं दार्शनिक मान्यताएं २ लाजा तथा पुष्प सौमनस्य अर्थात् प्रसन्नता का प्रतीक माना जाता था । वसुनन्दि श्रावकाचार नामक ग्रन्थ में भी ' प्रष्टद्रव्य पूजा' के अवसर पर प्रयोग की जाने वाली सामग्रियों के सम्बन्ध में भी ऐसी ही धारणा का निर्देश हुआ है तथा पूजन के समय जल, चन्दन अक्षत आदि के समर्पण का फल बताया गया है। सागारधर्मामृत में स्पष्ट रूप से उल्लेख आया है कि जल से पूजक के पाप नाश होते हैं । चन्दन से शरीर सुगन्धित होता है । अक्षत धन सम्पदा का संरक्षण करता है । पुष्प से मन्दारमाला की प्राप्ति होती है । नैवेद्य से लक्ष्मीपतित्व मिलता है । दीप और धूप कान्ति तथा सौभाग्य देते हैं । फल से पूजक के मनोरथ पूर्ण होते हैं तथा अर्ध से अभीष्ट की प्राप्ति होती है । 3 पूजा द्रव्य के रूप में बहुमूल्य वस्तुएं विभिन्न राजकीय महोत्सवों के अवसर पर होने वाली जिनेन्द्रपूजा अथवा मन्दिर स्थापना समय प्रयुक्त सामान्य पूजा वस्तुओं के अतिरिक्त अन्य बहुमूल्य तथा कठिनता से उपलब्ध होने वाली वस्तुओं को भेंट के रूप में चढ़ाया जाता था । इन वस्तुनों में रत्नमणिजटित मुकुट, दर्पण, भारी, स्वर्ण आदि विभिन्न धातुनों से निर्मित कलश, थाली, धर्म-चक्र, तुरही, चंदोवा, छत्र, घण्टा, ध्वजा तथा विभिन्न तीर्थों के जल आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । ४ वराङ्गचरित में प्रतिपादित प्रतिमाभिषेक के अवसर पर सोने, चांदी, कांसे तथा ताँबे के पात्र, विशाल नादें, शंख, अनेक धातुओं के घड़े, पालिकाएं स्वर्ण यन्त्र आदि बहुमूल्य वस्तुओं द्वारा पूजा करने का उल्लेख भी आया है । " सोने आदि के संस्कृत एक हजार आठ कुम्भों में विभिन्न तीर्थ स्थलों का जल भरा जाता था। १. आप हि शान्त्यर्थमुदाहरन्ति प्राप्यायनार्थं हि पयो वदन्ति । कार्यस्य सिद्धि प्रवदन्ति दघ्ना दुग्धात्पवित्रं परमित्युशन्ति ।। दीर्घायुराप्नोति च तण्डुलेन सिद्धार्थ का विघ्नविनाशकार्थाः । तिलैविवृद्धि प्रवदन्ति नृणामारोग्यतां याति तथाक्षतेस्तु || यः शुभं वर्णवपुर्धृतेन फलैस्तु लोकद्वयभोगसिद्धिः । गन्धास्तु सौभाग्यकरा नराणां लाजैश्च पुष्पैरपि सौमनस्यम् ॥ २. वसुनन्दि श्रावकाचार, ४८३-१२ ३. ४. ५. वही, २३.२२, २३ सागारधर्मामृत, २.३० वराङ्ग०, २३.७६ - ८२ ३३७ - वराङ्ग०, २३.१६-२१ अष्टोत्तराः शीतजलैः प्रपूर्णाः सहस्रमात्राः कलशा विशालाः । — वही, २३.२६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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