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________________ धार्मिक जन-जीवन एवं दार्शनिक मान्यताएं से होती है अथवा जैन संग्रहालयों में रखी मूर्तियों के आधार पर तत्कालीन देवी - पूजा की लोकप्रियता का अनुमान लगाया जा सकता है । " विजय के उपलक्ष्य में देवी- पूजा महोत्सव ऐतिहासिक महाकाव्य कीर्तिकौमुदी में देवी 'एकल्लवीरा' का भव्य पूजामहोत्सव वरित है । वस्तुपाल द्वारा शङ्ख को पराजित कर दिए जाने के उपरान्त नगर में एक विजय यात्रा का प्रायोजन किया गया। सभी नागरिकों ने इस यात्रा में भाग लिया तथा देवी 'एकल्लवीरा' के मन्दिर तक गए। इस अवसर पर राजकीय मार्गों को भी विशेष रूप से सजाया गया। सभी घरों में देवी-देवताओं की पूजा भी सम्पन्न हुई । स्त्रियों के मङ्गल गीत तथा तुरही श्रादि वाद्य यन्त्रों से वातावरण गूंज उठा। 3 वस्तुपाल ने मन्दिर में जाकर दूध, दही, शहद, घी, खाड, पुष्प, कपूर, काले अगरु चन्दन आदि पवित्र सामग्रियों से देवी प्रतिमा की पूजा की, ४ नैवेद्य चढ़ाया तथा वस्त्रार्पण किया। इस अवसर पर वस्तुपाल ने अपने तलवारदण्ड में तथा हृदय में वास करने के लिए देवी से विशेष प्रार्थना की । ६ देवी के महात्म्यों का गुणगान करते हुए तथा बार-बार प्रणाम करते हुए वीर भूपाल ने देवी एकल्लवीरा के प्रति अपनी अपार भक्ति प्रदर्शित की । ४. जैन मन्दिर एवं तीर्थस्थान जैन धर्म में मन्दिर निर्माण का मनोविज्ञान वराङ्गचरित में विशेष रूप से उभर कर आया है । सातवीं प्राठवीं शताब्दी में बादामी के चालुक्य राजाश्रों से जैन मन्दिरों के निर्माण को जो प्रोत्साहन मिला वराङ्गचरित में उसका चित्ररण हुआ है ।' १. पुष्पेन्द्र कुमार, जैन धर्म में देवियों का स्वरूप, पूर्वोक्त, पृ० १३२-१४० २. कीर्ति०, ६.१६-१७ ३. वही, ६.२-३ ४. दुग्धेन दध्ना मधुना घृतेन, खण्डेन तोयेन च शुद्धिमूर्तिम् । प्रानर्च देवीं सचिव: प्रसून कपूर - कृष्णा गुरुचन्दनाद्यैः ॥ ५. वही, ६.३६ ६. नुत्या च नत्या विशेषवत्या, देवीं समानीय मुदं स श्रीवरभूपाल कृपाणदण्डे, स्थिति ययाचं हृदि च ७. - ए० एन० उपाध्ये, वराङ्गचरित, भूमिका, पृ० ७०-७२ ३३६ वही, ६.३७ मानी । स्वकीये ॥ — वही, ६.४०
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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