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________________ धार्मिक जन-जीवन एवं दार्शनिक मान्यताएं ३१७ (ख) जाति-व्यवस्था का विरोध हिन्दू धर्म में प्रचलित महत्त्वपूर्ण गोत्रों के सम्बन्ध में भी वराङ्गचरितकार ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उनकी मान्यता है कि कौशिक, काश्यप, गौतम, कौडिण्य, माण्डव्य, वसिष्ठ, पात्रेय, कौत्स, आङ्गिरस, गार्य, मौद्गल्य, कात्यायन, भार्गव आदि गोत्रों का आधार भी पक्षपातपूर्ण है। विश्वामित्र, अत्रि, कुत्स आदि ऋषियों के वंश को विख्यात करने' तथा अपने परिवार का महत्त्व बढ़ाने के निमित्त से विभिन्न व्यक्तियों के नाम पर प्रचलित इन अनेक गोत्रों अथवा जातियों का प्राधार भी वर्ण-व्यवस्था के समान ही दोषपूर्ण माना गया है । (ग) बेद-प्रामाण्य का विरोध वेदों को प्रमाण मानने वाले लोगों के प्रति जहासिंह का कहना है कि वेदों को प्रमाण मानकर उनमें निर्दिष्ट यज्ञ विधानों का अनुसरण करने से पशुबलि की हिंसा का पाप लगता है । कालान्तर में निरपराध प्राणियों की हिंसा करने से उदित हुए कर्मफल से नरकादि एवं विभिन्न प्रकार की यातनामों को भोगना पड़ता है । फलत: वेदों को प्रमाण मानना किसी भी रूप से उचित जान नहीं पड़ता है।४ यज्ञावसर पर मारे गए पशु का सीधे स्वर्ग चले जाने के कारण कोई पाप नहीं लगता आदि मान्यताओं को धूर्त एवं दुराचारी मनुष्यों की उक्ति माना गया है । यदि यह सत्य कथन होता तो सर्वप्रथम यज्ञकर्ता अपने सम्बन्धियों को यज्ञ की बलि चढ़ाकर स्वर्ग पहुंचा देते । उधर यशस्तिलकार स्वयं जैनमतावलम्वी होते हुए भी । १. ये कोशिका: काश्यपगोतमाश्च कौण्डिन्यमाण्डव्यवसिष्ठगोत्राः । प्रात्रेयकोत्साङ्गिरसा: सगार्या मौद्ग्ल्यकात्यायनभार्गवाश्च ।। -वराङ्ग०, २५.५ २. गोत्राणि नानाविधजातयश्च मातृस्नुषामैथुनपुत्रभार्याः । वैवाहिक कर्म च वर्णभेदः सर्वाणि चैक्यानि भवन्ति तेषाम् ।। -वही, २५.६ ३. वेदाः प्रमाणं यदि यस्य पुंसस्तेन ध्रुवो यज्ञविधिस्त्वभीष्टः । हिंसानुबन्धाः खलु सर्वयज्ञाः हिंसा परप्राणिविहिंसनेन ॥ -वही, २५.१२ ४. वराङ्ग०, २५.१३-१४ ५. यज्ञे वधे नैव वधोऽस्ति कश्चिद्वध्यो ध्रुवं याति सुरेन्द्रलोकम् । इदं वचो धूर्तविटस्य वेद्यं दयोपशान्तिश्रुतिवजितस्य ।। -वही, २५.१४ ६. वही, २५.१५-१६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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