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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
१४. हारलतिका'-'हारलता' से कुछ छोटी होती थी तथा वक्षस्थल तक ही लम्बाई पहुंचती थी।
१५. हारयष्टि 3 ---यह इकहरी माला होती थी। प्राय: इसे अनेक लड़ियों वाला कण्ठाभूषण माना जाता है।
१६. एकावली-मोतियों की एक लड़ी की माला को 'एकावली' कहते है। इसके मध्य भाग में मरिण लगी होती है। कीर्तिकौमुदी के अनुसार यह स्त्रियों के वक्षस्थल को सुशोभित करता था।"
१७. कण्ठिका–'कण्ठिका' में औषधियों की जड़ें मंत्रित करके भा पहनी जाती थीं। दाक्षिणात्य सैनिक भी तीन लड़ियों वाली 'कण्ठिका' पहनते थे।" 'कण्ठिका' रत्न निर्मित भी होती थी।
१८. निष्क१२-पद्मानन्द महाकाव्य के आधार पर स्त्रियों द्वारा 'निष्क' नामक कण्ठाभूषण धारण करने का उल्लेख मिलता है । 3 'निष्क' को प्रायः बच्चे भी धारण करते थे ।१४
१६. मौक्तिकदाम' ५–कण्ठाभूषणों में 'मौक्तिकदाम' की भी प्रायः गणना
१. चन्द्र०, ७.८५, जयन्त०, ७.६७ २. भाति हारलतिकास्य वक्षसि । जयन्त०, ७.६७ ३. वराङ्ग०, २३.४४, तथा नेमि०, ६.४६, कीति०, ७.५४ ४. गोकुल चन्द्र जैन, यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, चित्र फलक ४.
संख्या २१ ५. कीर्ति०, ७.५६ ६. नेमिचन्द्र शास्त्री, प्रादि पुराण में; पृ० २१२ ७. एकावली वक्षसि विस्फुरन्ती रराज राजीवलोचनायाः ।
__-कीर्ति०, ७.५६ ८. वराङ्ग०, १५.५६, चन्द्र०, १५.१७, धर्म०, १३. ३६ ६. गोकुल चन्द्र जैन, यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १४६ १०. वही, पृ० १४६ ११. रत्नकण्ठिकया कण्ठं-चन्द्र०, १५.१७ १२. पद्मा०, ६.५७ तथा द्वया० ८.७६ १३. पद्मा०, ६.५७ १४. द्वया०, ८.१० १५. नेमि०, ७.३० .