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________________ ३०५ श्रावास व्यवस्था, खान-पान तथा वेश-भूषा १०. कर्णमुद्रिका' - 'करणका' के समान हो 'मुद्रिका' के प्राकार का आभूषण था । वराङ्गचरित महाकाव्य में ही इसका उल्लेख मिलता है । ११. श्रवतंस - श्रवतंस' प्रायः पल्लवों तथा पुष्पों से बनते थे । 3 द्विसन्धान महाकाव्य के टीकाकार ने 'अवतंस' को 'कर्णाभरण' की संज्ञा ४ (ग) कण्ठाभूषरण मध्यकालीन भारत में कण्ठाभूषणों के विविध प्रकार प्रचलित थे । स्त्रियां कण्ठाभूषणों को सर्वाधिक पसन्द करतीं थीं । श्रादि पुराण में ही ५५ प्रकार उपलब्ध होते हैं। इनमें भी ग्यारह प्रकार की जैन संस्कृत महाकाव्यों के आधार पर अत्यधिक लोकप्रिय प्रकार हैं केवल मात्र हारों के यष्टि होती थी । ५ कण्ठाभूषरण इस १२ हार ६ – कण्ठाभूषणों के है। जैन महाकाव्यों में 'रत्न हार', माला ' ' का भी उल्लेख आया है । 8 लिए सामान्यतया 'हार' का व्यवहार होता 'मुक्ता हार आदि के अतिरिक्त 'मरिण - ८ ० १३. हारलता - सामान्यतया हार को ही कहा जाता था । जयन्तविजय में 'मौक्तिक- हारलता' का भी उल्लेख प्राया है ।११ 'हारलता' प्रायः लम्बी होती थी तथा भुजानों तक पहुंचती थी । १. वराङ्ग०, १५.५८ २. गलितावतंसकाः । - द्विस०, १.२६ ३. गोकुल चन्द्र जैन, यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १४१ ४. गालितावतंसकाः पतितकरर्णाभरणाः । - द्विस०, १.२६ पर पदकौमुदी टीका, पृ० १५ ५. नेमिचन्द्र शास्त्री, श्रादि पुराण में; पृ० २१६ ६ वराङ्ग०, ७.१७, चन्द्र०, ६.७, नेमि०, ११.६, धर्म ०, १६.७६, जयन्त०, ७.२२ तथा नर०, १.१० ७. वराङ्ग०, १५.५'७ ८. धर्म०, २०.३७ ε. चन्द्र०, १०. ५६ १०. चन्द्र०, १३.३. जयन्त०; ४.२६ ११. विमलमोक्ति कहारलता इव । - जयन्त०, ४.२६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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