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प्रावास व्यवस्था, खान-पान तथा वेश-भूषा
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कर सकते थे किन्तु प्रधान रूप से इनमें शिल्पी वर्ग की अधिक से १६७८ ई० में अल्मोड़ा के चन्द्रवंशी राजा बाजबहादुर के द्वारा प्रणीत 'राजधर्म कौस्तुभ ' २ नामक ग्रन्थ में 'निगम' प्रभाव होने से यह निष्कर्ष भी निकाला जा सकता है कि उत्तरी भारत के पर्वतीय प्रान्तों में 'निगम' नामक प्रावासीय संस्थिति विशेष प्रचलित नहीं थी ।
संख्या थी । १ १६३८ सभापण्डित प्रतन्तदेव नामक प्रावास भेद के
८.
• स्मृति ग्रन्थ एवं निबन्ध - ग्रन्थ - जिन स्मृति ग्रन्थों में 'नैगम' का उल्लेख मिलता है उनमें नारदस्मृति तथा बृहस्पतिस्मृति उल्लेखनीय हैं । व्यवहारप्रकाश द्वारा उद्धृत याज्ञवल्क्य के वचनों में भी 'नैगम' का उल्लेख हुआ है । स्मृति ग्रन्थों में प्राय: 'श्रेणीषमं', 'पाषण्डिधर्म' के साथ ही 'नैगमधर्म' का भी उल्लेख किया गया है । स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता है कि स्मृति ग्रन्थों में
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१.
२.
'यद्यपि इस निगम - नगर में विशेषकर शिल्पियों की बस्तियाँ होती थीं तथापि इन प्रवचन ( मयमत - १०, शिल्प ० - ५) प्रमाण से चारों वर्णों के लोगों के भी इसमें निवास होते थे— इसमें सन्देह नहीं परन्तु प्राधान्येन शिल्पी लोग रहते होंगे। निगम-नगर के विकास सम्बन्धी परम्परा में इसकी संज्ञा - 'निगम' का महत्त्व है। निगम का शब्दार्थ तो व्यापारमार्ग - Trade Route है श्रतः कालान्तर में इसी विशेषता के कारण नगर का नाम भी निगम पड़ गया ।'
४.
— द्विजेन्द्रनाथ शुक्ल, भारतीय वास्तुशास्त्र, लखनऊ, १९५५, पृ० १०८ Rajadharmakaustubha of Ananta Deva, ed. Mahāmahopādhyāya Kamala Krsna Smrtitirtha, Baroda, 1905, Vastuprakaraṇam
३. पाषण्डनैगमादीनां स्थितिः समय उच्यते ।
— व्यवहारप्रकाश, पृ० ३०६ पर उद्धृत नारदस्मृति नैगमा वैद्यकितवा: सभ्योत्कोचकवञ्चकाः । प्रकाशतस्करा ह्य ेते तथा कुहुकजीविनः ॥
- बृहस्पतिस्मृति, ३२.३ तथा मर्यादा लेखिता कार्या नैगमाधिष्ठितासदा । —व्यवहारप्रकाश, ३०६ पर उद्धृत बृहस्पतिस्मृति ५. श्रेणिनं गमपाषण्डिगणानामप्ययं विधिः ।
वही, पृ० ३०६, पर उद्धृत याज्ञवल्क्य
६. पाषण्डिनंग मश्रेणीपूगव्रातगणादिषु । संरक्षेत् समयं राजा दुर्गे जनपदे तथा ॥
- नारदस्मृति, १०२