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________________ २८६ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज थे।' मयमत (१०वीं शताब्दी) के अनुसार निगम में चारों वर्गों के लोग निवास करते थे ।' 'समराङ्गणसूत्रधार' (११वीं शती) के अनुसार 'निगम' की स्थिति ग्राम से कुछ ऊंची मानी जाती थी। 'मानसार' के अनुसार निगम' को कारीगरों का कस्बा स्वीकार किया गया है। इसी प्रकार 'शिल्प रत्न' (१६वीं शती) के अनुसार निगम में चारों वर्गों के लोग निवास करते थे तथा ये धन-धान्य एवं पशुः आदि से विशेष समृद्ध होते थे। ____ इस प्रकार १०वीं शताब्दी से लेकर १६वीं शताब्दी तक के वास्तुशास्त्र के ग्रन्थों में 'नियम' नामक नगर के निर्माण के लिए आवश्यक निर्देश दिए गए हैं। डो० एन० शुक्ल महोदय के मतानुसार प्रायः निगमों में चारों वरनों के लोग निवास १. वनमध्यमतो वापि गिरिसानुमतोऽपि वा ।। सदातोयातीरभाग्वा रक्षकरभिसंवतः। निगमो दुर्गसंयुक्तो वप्रेणापि समावृतः ॥ चतुर्दिक्स्थचतुर्दारो महाभागयुतो भवेत् । पीठाधिष्ठानसदप्रगोपुरादि समन्वितः ।।... राजकार्यकररन्यः पुरकार्यकरर्युतः । विपण्यादि समोपेतो न्यायशालादिभिर्युतः ।। नानाजातिजनाकीर्णो वारुण्यां देवगेहभाक् । तुङ्गस्सोधरुपेतोऽयं कथितो निगमो बुधः ॥ -विश्वकर्म०, ८.४०-४६ २. चातुर्वर्ण्यसमेतं सर्वजनावाससङ्कीर्णम् ।। बहुकर्मकारयुक्तं यन्निगमं तत समुद्दिष्टम् ।। -मयमत, १०.३४ ३. ऊनं कर्वटमेवेह गुणोनिगम उच्यते । ग्रामः स्यान्निगमादूनो ग्रामकल्पो गृहस्त्वसौ । -राजाभोजदेव कृत समराङ्गणसूत्रधार, सम्पा० द्विजेन्द्रनाथ शुक्ल लखनऊ, १६५५, ३२३-२४, पृ० २५२ ४. बहुकमंकार युक्तं निगमं तदुदाहृतम् । -मानसार०, अ० १०, पंक्ति ८४ ५. चातुर्वणैः कर्मकार नाकर्मोपजीविभिः । पण्याश्वषनधान्याद्येयुक्तं तु निगमं स्मृतम् ॥ -शिल्परत्न, अ०५
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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