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________________ मावास-व्यवस्था, खान-पान तथा वेश-भूषा २८३ का ही परवर्ती कोषकारों ने अनुसरण किया जिनमें विश्वकोष,' त्रिकाण्डशेष,, विश्वप्रकाश,3... मेदिनीकोष, नानार्थमंजरी,५. कोष-कल्पतरु, कल्पद्रुकोष, शब्दरत्नसमन्वयकोष, वाङ्मयार्णव कोष आदि उल्लेखनीय हैं । लगभग छठी शताब्दी से २०वीं शताब्दी तक के इन कोष-ग्रन्थों में 'निगम' के स्वरूपभेद पर भी पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। १२वीं शती के हेमचन्द्रकृत अभिधानचिन्तामरिण में 'निगम' के पर्यायवाची शब्द प्रावासभेद की दृष्टि से परिगणित हैं।१० हेमचन्द्र के समय तक भारत के भौगोलिक एवं राजनैतिक विभाजन १. निगमो वाणिजे पुर्यां कटे वेदे वणिक्पथे। –विश्वकोश २. कटे पुर्यां च निगमो नियमो निश्चये व्रते । –त्रिकाण्डशेष, बम्बई, १६१६, ३.२६६, पृ० १९४ ३. निगमो वाणिजे पुर्यां कटे वेदे वणिक्पथे । -विश्वप्रकाश, सम्पा०, श्री शीलस्कन्धस्थविर, बनारस, १९११, मत्रिकम्, ४२, पृ० ११३, मत्रिकम् ४५, पृ० ११८ ४. निगमो वाणिजे पुर्यां कटे वेदे वणिक्पथे। -मेदिनीकोष ५. निगमो स्त्री पुरे वेदे वाणिज्ये च वरिणग्धने । -नानार्थमञ्जरी, सम्पा०, के० पी०, कृष्णमूर्ति शर्मा, पूना १९५४, १२३६, पृ० ६१ ६. पुरं त्रिलङ्गयां नगरी नपुंसि, द्रङ्गो नलिङ्गो निगमः स्त्रियां पूः । निवेशनं पत्तनं पट्टने च स्थानीयमुक्तं पुटभेदनं च ॥ -कोषकल्पतरु, सम्पा०, एम० एन० पाटकर एवं के० वी० कृष्णमूर्ति, पूना, १९७५, पुरवर्ग-१, पृ० ११६ ७. तदर्द्धमस्त्रियां खेटस्तस्याद्धं पत्तनो स्त्रियाम् । तदहं निगमः पुंसि तदद्धं तु निवेशनम् ।-- कल्पद्रुकोष ८. निगमो वाणिजे पुर्यां कटे वेदे वणिक्पथे। -शब्दरत्नसमन्वयकोष, सम्पा० बी० भट्टाचार्य __ बड़ौदा, १९३२, पृ० २२८ १. निगमो नगरे वेदे निश्चये च वणिक्पथे। -वाङ्मयार्णव १०. नगरी पू: पुरी द्रङ्गः पत्तनं पुटभेदनम् ॥ निवेशनमधिष्ठानं स्थानीयं निगमोऽपि च । -अभिधानचिन्तामणि, सम्पा०, विजयकस्तूरसूरि, अहमदाबाद, वि० सं० २०१३, पद्यसंख्या ६७१-७२, पृ० २२१
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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