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________________ प्रावास-व्यवस्था, खान-पान तथा वेश-भूषा २६६ 'जनपद-निवासी 'जनों को सन्तुष्ट करना तथा उनके प्रति अनुग्रह करना ही रुद्रदामन् और अशोक को अभीष्ट था । रुद्रदामन् शिलालेख में स्पष्ट रूप से 'पौरजानादजन' लिखा गया है। कौटलीय-अर्थशास्त्र में जहाँ 'पौरजानपद' का प्रयोग हुअा है, वहां 'पुर-निवासी' और 'जनपद-निवासी' अर्थ करने पर भी अर्थ सङ्गति में कोई अन्तर नहीं पड़ता । दिव्यावदान में 'पौर' का जिस ढङ्ग से प्रयोग हुआ है, वह उसके सुसङ्गठित संस्था होने का परिचायक अवश्य है। तक्षशिला जैसे नगर में यदि म्युमिस्पिल-शासन के लिए 'पोरसभा' की सत्ता हो, तो कोई आश्चर्य नहीं। रामायण में जिस प्रकार 'पौरजानपद' का उल्लेख है, उससे इसका संस्था होने का निर्देश अवश्य मिलता है । परन्तु जायसवाल जी ने इसे ग्रेटव्रिटेन की वर्तमान समय को पार्लियामेन्ट के समकक्ष प्रतिपादित करने का जो प्रयास किया है, उसका समर्थन कर सकना सम्भव नहीं" ।' वास्तव में जायसवाल महोदय ने एक भी ऐसा उद्धरण प्रस्तुत नहीं किया जिससे 'पौरजानपद' को राज्य की 'संवैधानिक-निर्णयक:-समिति तथा 'निगम' को 'व्यापारिक समिति' के रूप में स्पष्ट रूप से सिद्ध किया जा सके। रामायण की समस्या का १५वीं-१६वीं शती के ग्रन्थों से समाधान करना भी ऐतिहासिक-दृष्टि से न्यायपूर्ण नहीं। इसके विपरीत रामायण के निकटस्थ काल में निर्मित जातकादि बौद्ध-ग्रन्थों में 'निगम' नगर-भेद की संस्था के रूप में वर्णित है ।२ अतः रामायण में आए 'निगम' को निवासार्थक-नगरभेद के रूप में ग्रहण करने तथा 'नगम' को 'निगम' से सम्बद्ध नागरिक, शासकादि मान लेने पर किसी प्रकार का अर्थविरोध उत्पन्न नहीं होता। डा० रामाश्रय जोकि मूलतः जायसवाल के समर्थक हैं, 'निगम' तथा 'नैगम' में कोई भेद नहीं मानते 13 वस्तुतः 'निगम' तथा 'नगम' में १. सत्यकेतु विद्यालङ्कार, प्राचीन भारतीय शासन व्यवस्था और राजशास्त्र, __ मसूरी, १६६८, पृ० २४१-४२ २. द्रष्टव्य, प्रस्तुत ग्रन्थ, पृ० २६७ ३. In the Ramayana both the words Nigama and Naigama are to be met with technically, the term Nigama as well as the Naigama stands for a 'Corporate Body' and so the word Naigama may mean a 'Corporate Body' of merchants or a member of such a body.' - Sharma, Ramasharya, A Socio-Political Study of the Valmiki Ramayana, Delhi, 1971, p. 374, fn. 1
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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