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आवास-व्यवस्था, खान-पान तथा वेष-भूशा
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तथा 'नगम' इसी प्रतिनिधित्व की सूचना देते हैं।' सरलमना रामायण का ऋषिकवि इसी प्रयोजन हेतु 'पुर-जनपद-निगम' के निवासियों के लिए अथवा उनके प्रतिनिधियों के लिए क्रमशः 'पौर', जानपद' 'नैगम' का प्रयोग करता है। 'पुर-जनपद' तथा 'निगम' नगरभेद की महत्त्वपूर्ण सस्थितियां होने के कारण रामायणेतर ग्रन्थों में भी इनका प्रयोग प्रायः साथ-साथ ही देखा जाता है । पी० सी धर्मा के मतानुसार 'नगम' को तत्कालीन 'नगरशासक' की संज्ञा देना उपयुक्त है।३ धर्मा के 'नगरशासक' अर्थ की रामायण के सन्दर्भो में अन्विति बिठाने का यदि प्रयास किया जाय तो रामायण में आए 'निगमवृद्ध'४ तथा 'निगम-मुख्य'५ का अर्थ 'निगम' का 'प्रधान' अथवा 'मुखिया' करने में किसी प्रकार का अर्थ-विरोध उत्पन्न नहीं होता
१. पौरजानपदैश्चापि नैगमश्च कृतात्मभिः ।
स्वयं वसिष्ठो भगवान् ब्राह्मणैः सह तिष्ठति ।। -अयो०, १४ ५५ ददर्शान्तःपुरं श्रीमान् नानाद्विजगणायुतम् । पौरजानपदाकीर्णब्राह्मण रूपशोभिताम् ।
-अयो० १४.३० समेत्य ते मन्त्रयित्वा समागतबुद्धयः ।। ऊचुश्च मनसा ज्ञात्वा वृद्धं दशरथं नृपम् ।। -प्रयो०, २.२० (जायसवाल द्वारा उद्धृत हिन्दू पोलिटी, पृ० २४१, पाद
टि० १६) ते हि ब्राह्मणेहि ग्रामनिगमनगरजनपदेहि अण्वन्तेहि शाक्यानां देवडहे निगमे सुभूतिस्य शाक्यस्य सप्तधीतरो द्रष्टा ।
–महावस्तु अवदान, Vol. I, ed, Basak, Radha Govinda, Calcutta, 1963, p. 465%; ग्रामनगरनिगमेषु मार्गविश्रामप्रदेशेषु च दानशाला कारयित्वा । The Jātakamālā of Āryasūra, ed. Diwedi, R. C., & Bhatt,
M.R., Delhi, 1966, p. 41; उपसृष्टपूर्वनगरनिगमजनपदानाम् । -Jūnāgarh Rock Inscription of Rudradāman-I (150 A. D.), Sircar, D.C. Select Inscription, Vol. I, Calcutta, 1965,
p. 178 3. Dharma, P.C., Rāmāyaṇa Polity, Madras, 1941, p. 70 ४. तथा निगमवृद्धाश्च । -रामायण, ७.४०.१८ ५. मुख्या ये निगमस्य च । वही- ३.१५.२