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________________ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज इस प्रकार भारतीय इतिहास के अध्येताओं के समक्ष 'निगम' के अर्थ एवं स्वरूपनिर्धारण की समस्या अब भी जटिल बनी हुई है। जैसा कि आर० सी० मजूमदार का कहना है कि सम्पूर्ण भारतीय वाङ्मय से प्रमाणों को एकत्र करके ही 'निगम' के स्वरूप को स्पष्ट किया जा सकता है-इसी उद्देश्य से प्रस्तुत विवेचन द्वारा रामायण, महाभारत, अष्टाध्यायी, अर्थशास्त्र, बौद्ध साहित्य, जैन साहित्य, कोष-ग्रन्थ, वास्तुशास्त्र-ग्रन्थ, शिलालेख, मुद्राभिलेख, स्मृति-ग्रन्थ, निबन्ध-ग्रन्थ तथा अन्य साहित्यिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर 'निगम' के यथोचित देशकालानुसारी स्वरूप को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। १. रामायण-रामायण में 'निगम' के उल्लेख प्रायः 'पौरजानपद' के साथ हुए हैं ।' राज्य के महत्त्वपूर्ण अवसरों पर 'पुर-जनपद-निगम' के निवासी एकत्र होते थे। कवि इन सभी लोगों की उपस्थिति का वर्णन प्राय: 'पौर', 'जानपद', 'नगम' आदि शब्दों द्वारा करता है। रामायणकाल की दूसरी एक विशेषता रही है कि महत्त्वपूर्ण अवसरों पर राजा प्रजा के विभिन्न प्रतिनिधियों को बुलाकर उनसे मन्त्रणा आदि भी करता था। रामायण के अनेक स्थलों पर आए 'पौरजानपद' १. पौरजानपदश्रेष्ठा नैगमाश्च गणसह-Srimad Valmiki Ramayana, pub. by Aiyar, R.N., ed. Sastrigal, S.K., Madras, 1933, अयो०, १४.४० पौरजानपदश्चापि नैगमश्च कृतात्मभिः-अयो०, १४.५५, पौरजानपदाश्चापि नैगमश्च कृताञ्जलि:-अयो०, १४.५४ ---Hindu Polity, p 240 पर उद्धृत । २. उपविष्टाश्च सचिवा राजानश्च सनैगमाः । प्राच्योदीच्याः दाक्षिणात्याश्च भूमिपाः ।। -अयो०, ३.२५ ब्राह्मणा जनमुख्याश्च पौरजानपदैः सह ॥ --अयो०, २.१६ ददर्श पौरान विविधान् महाधनानुपस्थितान् द्वारमुपेत्य विष्ठितान् ।। -अयो०, १४.६८ अमात्या बलमुख्याश्च मुख्या ये निगमस्य च। राघवस्याभिषेकार्थे प्रीयमाणास्तु संगताः ।। -अयो०, १५.२ ऋत्विभिब्राह्मणैः पूर्वकन्याभिर्मन्त्रिभिस्तथा। यौधेश्चैवाभ्यषिञ्चस्ते सम्प्रहृष्टाः सनगमः ॥ -युद्ध०, १३१.६२ ३. वही
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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