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श्रावास - व्यवस्था, खान-पान तथा वेश-भूषा
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२
के 'पौरजानपद-सिद्धान्त' की कटु आलोचना करते हुए इसकी प्रामाणिकता को चुनौती दी है ।' स्मरण रहे कि जायसवाल के 'पौरजानपद सिद्धान्त' से 'नैगम' की व्याख्या भी पूर्णतया प्रभावित है । इस सम्बन्ध में प्रार० सी० मजूमदार का सुझाव है कि जब तक 'निगम' शब्द की सम्पूर्ण भारतीय वाङ्मय से प्रमाणों को लेकर सम्यक् रूप से परीक्षा नहीं कर ली जाती और इस शब्द का वास्तविक भाव निश्चित करने की दिशा में कोई प्रारम्भिक खोज सामने नहीं श्रा जाती तब तक भण्डारकर द्वारा प्रतिपादित 'निगम' के 'नगर' अर्थ को ही प्रामाणिक मानना चाहिए। 3 मजूमदार महोदय के इस सुझाव को अन्य ऐतिहासिकों ने समर्थन देते हुए कहा कि 'निगम' का 'Chamber of Commerce' अर्थ प्राचीन भारतीय शासन व्यवस्था के अनुरूप नहीं है । 'निगम' का 'Corporation' आदि अर्थ अत्यधिक आधुनिक है, जिसे प्राचीन भारतीय शासन व्यवस्था के सन्दर्भ में ठीक बैठाने का प्रयास करना समीचीन नहीं । ४
'निगम' के अर्थनिर्धारण की दिशा में जर्मन विद्वान Otto Stein ने भी कुछ कार्य किया, किन्तु उनके निष्कर्षो के प्राधार पर निगम के 'नगर' श्रर्थं तथा 'व्यापारिक समिति' अर्थ दोनों को समर्थन मिलने के कारण स्थिति विवादपूर्ण ही रह जाती है । ६
१.
२.
-Jayaswal, Hindu Polity, p. 252 ३. रमेशचन्द्र मजूमदार, प्राचीन भारतीय संघटित जीवन, सागर, १९६६,
४.
(i) Law, N.N., 'The Janapada and Paura' (article) in the Historical Quarterly, Vol. 2, Nos. 2-3, 1926
(ii) Altekar, A.S., State and Govt. in Ancient India, Banaras, 1972, pp. 146-54
'Now it appears that originally the 'Naigama' of the capital was the mother of the Paura Association.'
५.
पृ० ४३
'The 'Chamber of Commerce' is quite a modern term and we are not at all sure whether this will suit our ancient Indian situation.'
—Maity, S. K., Eco. Life of Northern India, Calcutta, 1957, p. 157
Stein, Otto, Jinist Studies, ed. Jinavijay Muni, Ahmedabad, 1948
६.
' Summarizing one could say : nigama : (a) Trader's place, (b) Trader's body'.
- वही, पृ० १७