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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
१२. घोष'
हेमचन्द्र की अभिधान चिन्तामणि से सिद्ध होता है कि 'पाभीर-पल्लिका' अर्थात् अहीरों की बस्तियां 'धोष' कहलाती थीं ।२ चन्द्रप्रभचरित में 'घोष' में रहने वाले आभीरों, गोपों तथा गोपवधुनों का वर्णन पाया है। विश्वकर्मावास्तुशास्त्र के अनुसार भी 'घोष' में निवास करने वाले लोगों में 'गोपालक' ही
मुख्य थे।४
प्रआवासीय संस्थिति के रूप में निगम'–एक पुनविवेचन
रामायण एवं शिलालेखों में उपलब्ध 'निगम' शब्द के अर्थनिर्धारण में प्रायः इतिहासकार सहमत नहीं । इतिहासकारों का एक वर्ग 'निगम' का 'व्यापारिक समिति' (Trader's Body) अथवा 'ब्यापारिक-संगठन' (Trader's Corporation) अर्थ करता है, तो दूसरा वर्ग इसको निवासार्थक नगरभेद की इकाई के रूप में स्वीकार कर, 'निगम' से नगर (Town) का अभिप्राय लेता है। डा० के० पी० जायसवाल ने 'निगम' अथवा 'नगम' को 'Corporate Body of Merchants' के रूप में सिद्ध करने का प्रयास किया है । बसाढ़ के मुद्राभिलेखों में आए 'निगम' को ब्लॉख ने 'Chamber of Commerce' की संज्ञा प्रदान की है। दूसरी ओर पार० सी० मजूमदार एवं भण्डारकर प्रभृति ऐतिहासिक जायसवाल एव ब्लॉख के मतों से सहमत नहीं । एन० एन० ला० तथा ए० एस० अल्टेकर ने जायसवाल
१. घोषा: प्रतिध्वनितमन्द्रगुणा गुणाढ्याः । --वराङ्ग०, १.२६ २. घोषस्त्वाभीरपल्लिका । -अभिधान०, ४.६७ ३. चन्द्र०, १६.२, १३.४२, ४६ तथा जयन्त०, १.३७ ४. गोभिर्गोपालकैश्चापि सर्वतस्संवृता शुभा। -विश्व०, ८.३२ ५. Jayaswal, K.P., Hindu Polity, Pt. I & II, Banglore, 1943,
p. 240 ६. Mookerji, Radhakumud, Local Govt. in Ancient India,
Oxford, 1920, pp. 112-14 ७. Jayaswal, Hindu Polity, pp. 240-54
Bloch, Archeological Survey of India, Annual Report 1903-4, p. 104 (i) Majumdar, R. C., Corporate Life in Ancient India,
Calcutta, 1969, p. 41 (ii) Bhandarkar, Carmichael Lectures, (Delivered in Calcutta
University), 1918, p. 170, fn. I, p. 176