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________________ २५२ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज बाजार भी बनाए गए थे ।' राजप्रासाद के उत्तर दिशा में एक विशाल जैन मन्दिर भी बनाया गया था।' राजप्रासाद का वास्तुशास्त्रीय स्वरूप नगर के ठीक बीचों बीच राजप्रासाद का निर्माण किया गया था। राजप्रसाद के चारों ओर विशाल गजशालाएं तथा प्रायुधागारों का निर्माण किया गया था। राजप्रासाद के निकट ही कोश गृह, धान्य-गृह, वस्त्रशाला, तथा औषधालय भी बनाए गए थे। इनके अतिरिक्त राजप्रासाद के अन्दर भी निवासगृह, रहोगृह (गुप्त-मंत्रणा का स्थान), दोलागृह, (क्रीड़ागृह), जलगृह, मण्डनगृह (सज्जागृह), नन्दिवर्धन, (धर्मोत्सवगृह), महानस (पाकालय), तथा विशाल सभा भवन बनाए गए थे।५ राजप्रासाद से सम्बन्धित सभी भवन यथायोग्य रूप से तीन, पांच, छह, सात, पाठ तथा नौ मंजिलों तक बने हुए थे। नगर के समीपस्थ क्षेत्रों में ग्रामादि निर्माण इस नगर के चारों ओर के जङ्गलों को काटकर विशाल राज-मार्ग बनाए गए थे। वनों के प्राश्रम भी उत्कृष्ट पत्थरों तथा सुन्दर फर्शों से निर्मित थे। नगर की सीमा के समीप ही कृषकों, ग्वालों आदि के ग्राम बनाये गए थे। इनके अतिरिक्त इसके समीप 'नगर' 'पाकर', 'ग्राम' 'मडम्ब', पत्तन' आदि विभिन्न प्रकार के प्राद्योगिक एवं व्यापारिक शाखा नगरों अथवा ग्रामों के विद्यमान होने के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं।' इस प्रकार आठवीं शताब्दी में नगर विन्यास कला की दृष्टि से वराङ्गचरित द्वारा प्रतिपादित उपयुक्त प्रानर्तपुर-वर्णन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है । १. वराङ्ग०, २१.३४ २. नरेन्द्रगेहोत्तरदिक्प्रतिष्ठितो जिनेन्द्रगेहो मणिरत्नभासुरः । -वही, २१.३८ ३. २१.३४ ४. गजाश्वशालायुधगेहपंक्तय: सुवर्णधान्याम्बरभेषजालयाः । वही, २१.३७ ५. सभागृहं वासगृहं जलाग्निदोलागृहनन्दिवर्धनम् । महानसं सज्जनमण्डनाह्वयं...। -वराङ्ग०, २१.३६ ६. वही, २१.३६ ७. वही, २१.३६ ८. वही, २१.४० ६. वही, २१.४१-४४, तथा ४७ १०. वही, २१.४८
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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