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________________ श्रीवास व्यवस्था, खान-पान तथा वेश-भूषा ३५१ तोरणों सहित ध्वजाओं तथा पताकाओं से सुशोभित रहते थे । ' 'प्रट्टालकों' की 'वलभी' संज्ञा भी प्रचलित थी । एक आदर्श नगर - श्रानर्तपुर का वास्तुशिल्प वराङ्गचरित महाकाव्य में आनर्तपुर नामक एक नगर को पुनः स्थापना का वर्णन आया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण ने इस स्थान पर जरासंघ का वध किया था तथा विजयोल्लास से प्रानन्दित होकर नृत्य करने के कारण इस नगर का नाम श्रानर्तपुर पड़ गया था । राजा वराङ्ग ने इस नगर के पौराणिक महत्त्व से प्रभावित होकर इसकी पुनः स्थापना की थी। सातवीं प्राठवीं शताब्दी के नगरों की वास्तुशास्त्रीय कला की दृष्टि से वराङ्गचरित में प्रतिपादित इस श्रानर्त - पुर को एक आदर्श नगर की संज्ञा दी जा सकती है । ६ नगर चिह्न - पुराने ध्वंशावशेषों के स्थान पर जिस नवीन नगर की स्थापना की गई थी उसकी भौगोलिक सीमा के दोनों किनारों पर क्रमशः नदी तथा पर्वत थे । नगर के चारों प्रोर गहरी तथा चौड़ी परिखा (खाई) का निर्माण भी किया गया था । ७ नगर का विशाल प्राकार ( परकोटा ) भी बहुत ऊंचा बनाया गया था। 5 नगर में सरोवर, वापी, दीर्घिकाएं, छोटे-छोटे जलाशय, विशाल सभा स्थल, मन्दिर तथा श्राश्रमों का निर्माण भी कराया गया था। 5 नगरों में त्रिक, चौराहे, चौपाल आदि भी विद्यमान थे । १° नगर में व्यापार-विनिमय के लिए १. सतोरणाट्टालकर्व जयन्त्यश्चलत्पताका रुचिरा विरेजुः । वराङ्ग०, २२.६७ तथा - सगोपुराट्टालकचित्रकूटम् । - वही, २२.५७ २. वराङ्ग०, १.३७, धर्म १.७६ ३. वराङ्ग०, २१.२८.४० ४. पुरा यदूनां विहगेन्द्रवानो जनार्दनः कालियनागमर्दनः । रणे जरासन्धमभीर्निहत्य यन्ननर्तर्वान्नर्तपुरं ततोऽभवत् ।। ५. वही, २१.३० ६. तयोर्नदीपर्वतयोर्यदन्तरे । - वही, २१.२८ ७. वही, २१.३३ ८. वही, २१.३३ ६. वही, २१.३२, ३.४ १०. विभक्तनानात्रिकचतुष्कचत्वरम् । - वही, २१.३४ वही २१.२६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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