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________________ प्रावास-व्यवस्था, खान-पान तथा वेश-भूषा २४७ था।' नगरों में वर्णाश्रम-व्यवस्था का सम्यक-पालन होना भी राज्य की एक महत्त्व पूर्ण विशेषता स्वीकार की गई है ।२ वृद्धों का वृद्धों के साथ, युवकों का गुरुत्रों के साथ संसर्ग नगर-जीवन का वैशिष्ट्य स्वीकार किया गया है। नगरों में वेश्यालय होना पालोच्य काल की लोकप्रिय विशेषता रही थी। नगर-युवकों का वेश्याओं के पास आना-जाना भी सामान्य बात थी।५ नगर-वेश्याएं शृङ्गार-प्रसाधन कर लोगों को आकर्षित करने में विशेष दक्षता दिखाने के लिए प्रसिद्ध थीं। नेमिनिर्वाण तथा प्रद्युम्नचरित महाकाव्यों में द्वारावती नगरी की स्त्रियों की स्वच्छन्द काम-वासना का सजीव चित्रण किया गया है। शिक्षा तथा बुद्धिजीवियों के शास्त्र-ज्ञान से भी नगर की शोभा मानी गई है। निरन्तर व्यापार विनिमय, क्रय-विक्रय आदि की गतिविधियों के लिए नगरों का विशेष महत्त्व रहा था । सिद्धान्त रूप से यह स्वीकार किया गया है कि लोग न्यायाजित धन का उपभोग करते थे।११ इस प्रकार जैन संस्कृत महाकाव्यों में उपलब्ध नगर वर्णनों से नगरों में रहने वाले लोगों का आर्थिक स्तर पर्याप्त ऊंचा लगता है।१२ द्विसन्धान महाकाव्य में आए एक उल्लेख के अनुसार नगरों में झुग्गीझोंपडियों सदृश मकानों के अभाव रहने की सूचना प्राप्त होती है। १. अनेकवेषाकृतिदेशभाषा निरीरुयुर्वीपतिना सहैव । -वराङ्ग०, ३.१६, प्रद्यु०, १.३६ २. यस्याज्ञया स्वपथमुत्क्रमितुं न शेकुर्वर्णाश्रमा जनपदे सकले पुरे वा। -वराङ्ग०, १.५१ ३. वृद्धाः समेषु तरुणाश्च गुरुपदेशे । -वराङ्ग०, १.४३ ४. धर्म०, १.७५ तथा परि०, १.८१ ५. वैश्याङ्गनाः सुललिताः समदा युवानः । -वराङ्ग०, १.४३ ६. धर्म० १.७५ ७. नेमि०, १.३६, ४१ ८. प्रद्यु०, १.२७.४६ ६ वराङ्ग०, १.४२ गजाश्वशास्त्रसमृद्धया महत्या नगरी प्रविश्य । -वराङ्ग०, २.७ चन्द्र०, २.१४२ १०. वराङ्ग०, १.४०, द्विस० १.१८, २.२८, १.३२-३५, जयन्त १.४२ ११. वराङ्ग०, १.४०, चन्द्र० २.१४२ १२. वराङ्ग०, २१.४५ १३. गृहाणि तार्णानि भवन्ति पक्षिणां कुरगजातिन नरेषु सद्मसु । -द्विस०, १.३६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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