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________________ २४६ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज की प्रारम्भिक अवस्था 'नकर' थी।' वह इसलिए कि इन्हें कर से मुक्त रखा जाता था। आदिपुराण के लक्षण के अनुसार नगर, परिखा, गोपुर, अट्टाल (अटारी) वप्र, प्राकार से वेष्टित होते थे तथा नाना प्रकार के भवन, उद्यान, जलाशयों का भी इनमें विन्यास होता था।३ वास्तुशास्त्र के ग्रन्थ मानसार के अनुसार नगर में क्रयविक्रय आदि होता था। अनेक जातियों, श्रेणियों अथवा कर्मकारों की अवस्थिति के साथ-साथ विभिन्न धर्मानुयायियों के मन्दिर भी इनमें होते थे।४ मयमत के निर्देशानुसार चारों दिशाओं में नगर द्वार गोपुरों से वेष्टित होने चाहिएँ ।५ नगर जीवन : आर्थिक समृद्धि का परिणाम जैन संस्कृत महाकाव्यों में वर्णित नगर आर्थिक समृद्धि के कारण सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष समृद्ध रहे थे। नगरों के महलों में निरन्तर रूप से वीणा, मृदङ्ग आदि सङ्गीत ध्वनि के गूंजते रहने का उल्लेख आया है। इसी प्रकार अनेक प्रकार के उत्सव-महोत्सव, मन्दिर-पूजा, दान-क्रिया, आदि धार्मिक क्रिया कलापों के प्रति भी नागरिक विशेष रुचि लेते थे।७ नगर जीविकोपार्जन की दृष्टि से समृद्ध होने के कारण अनेक जातियों के लोगों, पाषण्डियों, शिल्पियों आदि से युक्त थे । नगर के सांस्कृतिक जीवन में किसी एक भाषा, वेश-भूषा का आग्रह विशेष नहीं रहा १. तु०-नात्र कराः सन्ति (उत्तराध्ययन टीका) नैतेषु करोऽस्तीति नकराणि (कल्पसूत्र टीका) Stein, Otto, The Jinist Studies, p. 5 २. 'Because 'nagara' is explained by 'na+kara'--'not paying taxes' the contrary of a nagara, the grāma pays eighteen kinds of taxes (kara)—वही, पृ० ४ ३. परिखागोपराटटालवप्रप्राकारमण्डितम । नानाभवनविन्यासं सोद्यानं सजलाशयम् ।। -जिनसेन कृत आदिपुराण, १६ १६६ ४. उदय नारायण राय, प्राचीन भारत में नगर तथा नगर जीवन, पृ० १८ ५. वही, पृ० १८ ६. सङ्गीतगीतकरतालमुखप्रलापर्वीणामृदङ्गमुरजध्वनिमुगिरद्भिः । - वराङ्ग०, १.३८ सङ्गीतकारम्भरसन्मृदङ्गाः। -धर्म०, १.७६, कीर्ति०, १.५२ ७. नेकप्रकारामहिमोत्सवचैत्यपूजादानक्रियास्नपनपुण्यविवाहसंगः । -वराङ्ग०, १.४१ प्रद्यु०, १.२८, कीर्ति०, १.५२, ८. पाषण्डिशिल्पिबहुकर्णजनातिकीर्णम् । -वराङ्ग०, १.४४, द्विस०, १.१८,
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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