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________________ २४८ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज नगरों में भवन-विन्यास नगरों में भवन-विन्यास का स्तर आर्थिक दृष्टि से विशेष समृद्ध रहा था। ऊंचे-ऊंचे महलों अथवा भवनों के बहुधा उल्लेख प्राप्त होते हैं।' भवनों के लिए 'प्रासाद'२ 'हh3' 'सौध'४ 'गृह'५ 'गेह' आदि संज्ञानों का प्रयोग भी हुआ है। भवन वास्तु के अनुसार सात मंजिले धनिकों के मकानों को 'हम्यं', चूने की सफेदी वाले सामन्तों तथा श्रेष्ठियों के मकानों को 'सौध', आयताकार आङ्गन तथा शयनागार, अग्न्यागार, गर्भवेश्म, आदि से युक्त मकानों को 'भवन', राजन्य वर्ग से लेकर मध्यम वर्ग तक के व्यक्तियों के मकानों को 'गृह' तथा दुमंजिले, शीत दायक मकानों को 'वेश्म' कहा जाता था। जैन संस्कृत महाकाव्यों में वर्णित महलों की दीवारें चूने आदि से निर्मित होती थीं। इनके अतिरिक्त कुछ ऐसे बड़े-बड़े प्रासादों के उल्लेख भी आये हैं जिनकी भित्तियों में स्फटिकमणि, नीलमणि, चन्द्रकान्तमणि,१० हरे रङ्ग की मणि' आदि१२ जड़े होते थे। चन्द्रप्रभचरित में चमकीले पत्थर से सुसज्जित गृहों की भित्तियों का भी उल्लेख आया है । 3 १. गृहैरिवाभ्रंलिहशृङ्गकोटिभिः । -चन्द्र०, १.२४ तथा धर्म०, ४.१८, प्रद्यु०, १.३६ प्रासादकटवलभीगोपुरैः । -- वराङ्ग०, १.३७ प्रासादचूलानिहितैश्चद्भिः । -नेमि०, १.४६ ३. हयैरनेकपरिवर्धितभूमिदेशे । -वराङ्ग०, १.३८ उच्चोच्च हाग्रकपोतपाली । -प्रद्यु०, १.३६ यत्रोच्चहम्याग्रहरिन्मणीनाम् । -धर्म०, ४.१८ निशागमे सौधशिरोधिरोहिणो। -चन्द्र०, १.२६ सुधाधवलसौधचयः । -वर्घ०, ५.३६ । ५. गृहाग्रभागोल्लिखितस्य० । -चन्द्र०, १.३० पोरगृहेषु चौरः । -नेमि०, १.४२ ६. नरेन्द्रगेहोत्तरदिक्प्रतिष्ठितो जिनेन्द्रगेहो मणिरत्नभासुरः । -वराङ्ग०, २१.३८ ७. सुधाघवलसौधचयः । -वर्ध०, ५.३६ ८. दृष्ट्वा स्फुटं स्फटिकभित्तिभागे । - वही, १.२६ ६. यत्सौधकुड्येषु विलम्बमानानितस्ततो नीलमहामयूखान् । -वर्ध०, १.२३ १०. चन्द्रमणिप्रणद्धसौधाग्रभूमि। -वही, १.३३ ११. हरिन्मणीनां किरणप्ररोहै;। - वही, १.२५ १२. रम्याणि हाणि सुवर्णरत्नमयानि । -जयन्त०, १.४२ १३. बहुधोज्जवलोपलप्रणद्धभित्तीनिगृहाणि सर्वतः । -चन्द्र०, १.३४
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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