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अर्थव्यवस्था एवं उद्योग-व्यवसाय
व्यापारिक काफिले
जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि एक साथ काफिले के रूप में व्यापार करने के लिए जाने वाले वरिणकों की 'सार्थ' संज्ञा प्रचलित थी । वराङ्गचरित में ऐसे ही 'सार्थपति' सागरवृद्धि नामक नगर सेठ का वर्णन आया है । वराङ्गचरित के अनुसार भी काफिले बनाकर व्यापार के लिए जाने वाले व्यापारी 'सार्थ' कहलाते थे । 'सार्थवाहाधिपति' राजाओं के समान ही धन, ऐश्वर्य तथा सेना, गुप्तचर आदि से सम्पन्न होते थे । मार्ग में जाते हुए इनके साथ अनेक गुप्तचर भी रहते थे जो काफिले को चोर-दस्युत्रों आदि के आने की पूर्वसूचना दे देते थे । बराङ्गचरित में उल्लिखित वर्णनों के आधार पर सार्थवाहों के गुप्तचर द्वारा एक व्यक्ति को सन्दिग्धावस्था में घूमते हुए देखकर 'कहाँ जाते हो ? क्या ढूंढ रहे हो ? क्या प्रयोजन है ? तुम्हारे स्वामी का क्या नाम है ? उसका सैन्य बल कितना है ? यहाँ से कितने योजन की दूरी पर ठहरा है ? आदि पूछताछ करने का उल्लेख हुआ है । इससे ज्ञात होता है कि सार्थवाह-वर्ग जङ्गली पुलिन्द प्रादि जातियों के लोगों से सदैव भयभीत बने रहते थे । पुलिन्द श्रादि जातियां भी सेना सहित सार्थवाहों के काफिले पराक्रमरण कर धन-सम्पत्ति लूट लिया करती थीं। इन्हीं कारणों से सार्थवाह लोग काफिले में सशस्त्र सेना भी रखते थे । वराङ्गचरित में सार्थवाहों तथा पुलिन्दों के मध्य घोर युद्ध होने का उल्लेख भी श्राया है 5
१. काणे, धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग २, पृ० ६४६
२. समूचिवान्संसदि सार्थनायकः । - वराङ्ग०, १३.८५, प्रदाप्य पाद्यं वणिजां पतिस्ततो । - वही, १३.८७
३. वराङ्ग०, १३.७६, तथा १४.६४
४.
वही, १३.८६-८६ तथा सर्ग-१४
२२५
५. वही, १३.७८, १४.६
६. क्व यासि किं पश्यसि कि प्रयोजनं क्व वेश्वरो वा क्व च तस्य नाम किम् । कियलं वा कतियोजने स्थितं वदेति संगृह्य बबन्धुरीश्वरम् ||
- वही, १३.७७
७. वही, १४.११, १३-१५
८. पुलिन्दकानां वणिजां च घोरं मुहूर्तमेवं समयुद्धमासीत् ।
—वही, १४.२३