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________________ २२४ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज जल पीने के लिए आए हुए बगुलों, सारसों, जलमुगियों आदि पक्षियों को मार देने के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं।' इस प्रकार पशु-पक्षी मनुष्यों से सदैव भयभीत रहते थे। .. (घ) वाणिज्य व्यवसाय व्यापार का स्वरूप जैन संस्कृत महाकाव्यों में प्रतिपादित व्यापार तथा क्रय-विक्रय सम्बन्धी उल्लेखों से ज्ञात होता है कि वाणिज्य विशेष प्रगति पर था । वैश्यवर्ग वाणिज्य को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानता था।२ खानों से, सेतुओं से, तथा वणिक्पथों से राजा द्वारा कर प्राप्त करने के उल्लेख यह भी स्पष्ट कर देते हैं कि धातु व्यापार तथा समुद्र व्यापार विशेष प्रगति पर था। नगर के बाजारों की समृद्धि का मुख्य कारण खनिज उत्पादन तथा व्यापार रहा था। भारत तथा अन्य, नेपाल, चीन आदि देशों के मध्य भी व्यापारिक वस्तुओं के आयात-निर्यात होने के संकेत प्राप्त होते हैं ।५ आदिपुराण में स्पष्ट रूप से समुद्र-व्यापार का वर्णन पाया है। इसी सन्दर्भ में व्यापारियों की नौकानों का मार्ग में टूट जाना, आँधी तुफानों में नौकाओं का फंस जाना प्रादि समुद्री व्यापारियों को अनेक मार्गगत कठिनाइयों का उल्लेख भी पाया है।६ स्थलमार्ग से व्यापार करने वाले वणिकों की 'सार्थ' संज्ञा प्रचलित थी। ये सार्थवाह किसी 'सार्थनाथ' के नेतृत्व में देश-देशान्तरों में जाकर व्यापार करते थे। सार्थवाहादि व्यापारी अधिकांश रूप से विभिन्न प्रकार के मोती माणिक्यादि तथा सोने-चांदी आदि का व्यापार करते थे। १. वही, ६.१६ २. कलाकौशलमेव स्याद्, वणिजां वत्स जीवनम् । —पद्मा०, ७.५०; भवन्ति वैश्याः शूद्राश्च, कलाकौशलजीविनः । -पद्मा०, ७.५३; __ श्लाघ्य कुर्वन् तत् कर्म यन्नवात्मकुलोचितम् । -पद्मा०, ७.५५ ३. वणिक्पथे खनिष, वनेषु सेतुसु । द्विस०, २.१३ ४. द्विस०, १.३४, २.२८, चन्द्र०, १.१८ । ५. ततश्चचाल नेपालं प्रावृट्कालेऽपि बालात् । -परि०, ८.१५४ ६. आदि०, ४७.४५-१०८ ७. वराङ्ग०, १३.७६ तथा आदि०, ४६.११२-१४२ ८. स सार्थनाथ: परिपृच्छति। -वराङ्ग०, १३.८२, तथा तु०-देशान्तरं प्राप्य समान्तरेषु । वराङ्ग०, १४.६२ ६. प्रवालमुक्तामणिरूप्यकाञ्चनरयं मृतः सार्थ इतो निगद्यताम् । वही, १३.७८
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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