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________________ अर्थव्यवस्था एवं उद्योग-व्यवसाय है।' चन्द्रप्रभचरित महाकाव्य में कृषि-खेतों की हरियाली का वर्णन करते हुये कहा गया है कि शाक-सब्जियों के खेत भी उत्कृष्ट प्रकार की सब्जियों से युक्त थे। इन खेतों अथवा बगीचों में बड़ी-बड़ी लौकियां (लाबुक) उत्पन्न होती थी। इसी प्रकार 'धर्मशर्माभ्युदय' में कूष्माण्ड (लौकी अथवा कदू) चिर्मट (कचरिया) वृन्ताक (बॅगन) वास्तुक (बथुप्रा) आदि सब्जियों का शाक वाटकों में उत्पन्न होने का उल्लेख आया है। इनके अतिरिक्त जिन शाक-सब्जियों की बगीचों अथबा खेतों में उत्पन्न होने की सम्भावना की जा सकती है उनमें पीली सरसों,४ प्रार्द्र कन्द (अदरक), कलिङ्ग (कलिंदा अथवा तरबूज), मूलक (मूली), मिर्च आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । विभिन्न प्रकार के दालों आदि के पौधों को भी इन्हीं शाकवाटकों में उगाने का प्रचलन भी रहा था जिनमें, चना, उड़द, आदि दालें विशेष उल्लेखनीय हैं। शाक बगीचों की ग्वालिनों (गोकुल-योषिता) द्वारा देखभाल की की जाती थी। (ख) वृक्ष-उद्योग उद्यान-व्यवसाय तथा बागवानी कृषि के साथ साथ उद्यान व्यवसाय विशेष प्रगति पर था। ग्रामों तथा नगरों की शोभा उद्यानों तथा वाटिकाओं (बगीचों) आदि से मानी जाने लगी थी। तत्कालीन जन जीवन में इन उद्यानों आदि का विशेष प्रभाव उपलक्षित होता है । सामान्यतया 'उद्यान' पथिकों के विश्राम स्थल थे। राजा आदि धनिक १. निष्क्रान्ता कथमपि शाकवाटकेभ्यः । -धर्म०, १६.७२ २. बृहदलाबुकगौरववामनां वृतिमुपयु परि प्रसृतः पपे। -चन्द्र०, १३.४३॥ ३. कूष्माण्डीफलभरगर्भचिर्भटेभ्यो वृन्ताकस्तबकविनम्रवास्तुकेभ्यः । . -धर्म०, १६.७२ ४. धर्म०, १८.१८ ५. पाकन्दं कलिङ्गं (कलिन्द) वा मूलकं ।। -धर्म०, २१.१३८ ६. वराङ्ग०, २२.७२ ७. चन्द्र०, १३.४३ ८. चन्द्र०, १.३१. १२.२० तथा वराङ्ग०, १.३७, धर्म०, ३,१६, १७, २५-३० तथा सर्ग-१२ ६. चन्द्र०, २.१२०
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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