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________________ अर्थव्यवस्था एवं उद्योग-व्यवसाय २११ सिंचाई के साधन यद्यपि सिंचाई का प्रमुख साधन वर्षा एवं नहरों आदि का जल था' तथापि राज्य की ओर से भी खेतों की सिंचाई करने की व्यवस्था की जाती थी। द्विसन्धान महाकाव्य में जलयन्त्रों का उल्लेख पाया है। इन यन्त्रों में 'घटीयन्त्र' 'रहट' सहश होता था। इसके 'अरों' अर्थात् काष्ठ कीलों को पांव से दबाने पर पानी निकाला जा सकता था । इमी प्रकार सिंचाई करने की एक दूसरी विधि का सङ्केत भी प्राप्त होता है। इसके अनुसार पहले किसी यन्त्र द्वारा पानी को एकत्र कर लिया जाता था । तदनन्तर उसका नालियों द्वारा निकास कर सिंचाई की जाती थी। वर्धमानचरित के अनुसार ऊंची भूमि पर स्थित खेतों की सिंचाई करने के उद्देश्य से नदियों में कृत्रिम यंत्र लगे होते थे। द्वयाश्रय महाकाव्य में सिंचाई करने के उद्देश्य से बनाई गई प्रणालियों को 'पाख' संज्ञा दी गई है।५ 'यन्त्रप्रणालीचषक' अर्थात् कृत्रिम यन्त्रों द्वारा बनाए गए पनाले भी सिंचाई के महत्त्वपूर्ण साधन रहे थे ।६।। कृषि उपज ___ जैन संस्कृत महाकाव्यों के अनुसार कृषि-पैदावार सम्बन्धी अनाजों में धान की उपज बहुत अधिक मात्रा में होती थी। व्रीहि, शालि, षष्ठिक प्रादि धानों के विविध प्रकारों का उल्लेख आया है। धान की पौध को 'कलम' संज्ञा भी दी गई है। इसके अतिरिक्त गोधूम (गेहूं), अलसी, तिल, जौ, मुद्ग (मूंग) चना, १. परि०,१.१२ २. अरान् घटीयन्त्रगतान् गतश्रमः, पयःकणैरग्रपदेन पीडयन् । – द्विस०, १.१३, तथा वराङ्ग०, ५.१०६ ३. यन्त्रोद्धृत वारिपूरितम् । शिखावलान्यत्र वहत्प्रणालिकं करोति० ॥ -द्विस०, १.२३ ४. जलोद्धृतावुद्यतकच्छिकानां तुलाघटीयन्त्रविकीर्णकूलाः । -वर्ध०, १.१२ ५. द्वया०, १३.३३ ६. यन्त्रप्रणालीचषकैरजस्रमापीय पुण्ड्रेक्षुरसासवौघम् । -धर्म०, १.४५ ७. वराङ्ग०, २१.४१, चन्द्र०, ७.१६ ८. वराङ्ग०, २१.४०, चन्द्र०, ७.१६ द्विस०, २.२३, आदि०, ३.८६ १०. विशेष द्रष्टव्य, नेमिचन्द्र, आदिपुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० १६३-६५ ११. चन्द्र०, १६.२
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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