________________
अर्थव्यवस्था एवं उद्योग-व्यवसाय
२०६
पर 'कुटुम्बी' शब्दों का कृषक के रूप में ही प्रयोग किया है ।' 'कुटुम्बी' का 'सामन्त' आदि के साथ प्रयोग होने के कारण तथा कुटुम्बियों को सामन्तों के 'उपमान' के रूप में ही प्रयोग करने के कारण यह भी सिद्ध होता है कि 'कुटुम्बी' आदि का स्वरूप सामन्ती चरित्र के सांचे में ढल चुका था। अर्थात् 'कुटुम्बी' आदि कृषक वर्ग राजा को कर देते थे । ये सामन्तों के समान राजा के अनुग्रह पर ही जीवित थे तथा वास्तविक किसानों के मुखिया भी बने हुये थे। - वैश्य वर्ग का मुख्य व्यवसाय वाणिज्य ही रह गया था किन्तु वर्णविभाजन की दृष्टि से वाणिज्य, कृषि, पशुपालन, शिल्प आदि व्यवसाय अब एक ही 'श्रेणि' में गिने जाने लगे थे । पद्मानन्द महाकाव्य में इन सभी व्यवसायों के लिये 'कला-कौशल' शब्द का व्यवहार हुआ है । यह इस तथ्य की ओर भी संकेत करता है कि व्यवसाय विभाजन में जो स्पष्ट अन्तर पहले था वह अब नही रहा था। इस प्रकार मध्यकालीग भारत आर्थिक व्यवसाप-विभाजन की दृष्टि से एक ऐसा युग था जिसमें वर्णव्यवस्था की चार प्रमुख वर्ग चेतनाओं का स्थान अब केवल तीन वर्गचेतनाओं ने ले लिया था। ऐसा प्रतीत होता है कि कलाकौशलपरक नवीन आर्थिक संचेतना अर्थव्यवस्था के 'उत्पादन' एवं 'वितरण' से मुख्यतया जुड़ चुकी थी जिसका व्यावहारिक रूप से सम्पादन वैश्य एवं शूद्र वर्ग द्वारा किया जाने लगा था। इन दोनों वर्गों के एकीकृत होने से सर्वाधिक लाभ यदि किसी वर्ग को मिल सकता था तो वह सामन्त राजाओं का वर्ग ही था। यही कारण है कि इस तृतीय वर्ग की संचेतना को राजसंस्था द्वारा भरपूर प्रोत्साहन और समर्थन मिला ।
२. प्रमुख उद्योग-व्यवसाय
(क) कृषि इस युग में अर्थव्यवस्था की मुख्य भित्ति कृषि पर ही अवलम्बित थी। स्वायत्त एवं आत्मनिर्भर ग्रामों की अर्थचेतना भी मूलतः कृषि उत्पादनों से अनु
१. कुटुम्बिका इव वयं करदावशगाश्च वः ।
-त्रिषष्टि०, २.४.१७३ तथा कुटुम्बिनः पत्तयो वा सामन्ता वा त्वदाज्ञया।
प्रतः परं भविष्यामस्त्वदधीना हि नः स्थितिः ॥ -- वही, २.४.२४० २. वही, २.४.१७३ २.४.२४० तथा ३. भवन्ति वैश्याः शूद्राश्च कलाकौशलजीविनः । —पद्मा०, ७.५३, तथा
शिल्पं कला विज्ञानं च मालाकारस्तु मालिकः । -अभि०, ३.६०० ४. विशेष द्रष्टव्य, प्रस्तुत शोध प्रबन्ध, पृ० २०३-७