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________________ अर्थव्यवस्था एवं उद्योग-व्यवसाय २०१ में 'शिल्पी रत्न' का उल्लेख भी इसी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है।' इस प्रकार कृषि आदि उत्पादन से सम्बन्धित उद्योगों के अतिरिक्त शिल्प आदि व्यवसाय भी आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था से विशेष रूप से प्रभावित थे। अग्रहार ग्रामों में शिल्पी आदि जातियों के पुनर्वास पर प्रतिबन्ध भूमिदान तथा ग्रामदान से सम्बन्धित आर्थिक व्यवस्था में 'अग्रहार' ग्रामों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी। 'अग्रहार' नामक ग्राम राजाओं द्वारा ब्राह्मणों को दान में दिए गए वे ग्राम थे जिनका संरक्षण राजा के अधीन ही होता था । २ सातवींआठवीं शताब्दी के समुद्रगुप्त के नाम से जाली तौर पर जारी किए गए दो ताम्रपत्रों से विदित होता है कि इन गांवों में दूसरे किसी गाँव के किसानों तथा शिल्पियों को बसाने पर प्रतिबन्ध लगा हुआ था। शर्मा महोदय की मान्यता है कि इन 'अग्रहार' ग्रामों में बिना कर दिये भी रहा जा सकता था अतएव अनेक किसान तथा शिल्पी कर से बचने के लिए इन गांवों में शरण लेना चाहते थे। इसी प्रकार अनेक देशों के शिल्पी नगरों में प्राकर जीवन-यापन करना अधिक पसन्द करते थे।६ आठवीं शताब्दी के वराङ्गचरित में भी शिल्पियों द्वारा समृद्ध नगर में वास करने के उल्लेख मिलते हैं। इन तथ्यों से इतना स्पष्ट होता है कि निम्नवर्ग की कृषक-शिल्पी आदि जातियाँ ऐसे नगरों अथवा ग्रामों में जाकर रहना पसन्द करती थीं जहां उन्हें जीविकोपार्जन के अधिक अवसर मिल सकें। किन्तु अर्थव्यवस्था के छिन्न-भिन्न हो जाने के भय से कृषकों तथा शिल्पियों के स्वेच्छा से स्थानान्तरण पर प्रतिबन्ध भी लगाया जाता था। १. द्रष्टव्य-प्रस्तुत ग्रन्थ, पृ० १६४ २. Thapar, Romila, A History of India, Pt. I, p. 176 ३. Fleet, Corpus Inscriptionum Indicarum, No. 60, p. 254 ४. शर्मा, भारतीय सामन्तवाद, पृ० ६६ ५. वही, पृ० ६६ ६. तु०-देशान्विहाय हि पुराध्युषितान्कलज्ञाः शिल्पावदातमतयश्चै नटा विटाश्च । -वराङ्ग०, १.२८ ७. तु०-पाषण्डिशिल्पिबहुवर्णजनातिकीर्णम् । -वराङ्ग०, १.४४ ८. शर्मा, भारतीय सामन्तवाद, पृ० ६६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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