SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०० जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी। राज्य के विभिन्न उत्सव-महोत्सवों में 'श्रेणिगण' के प्रधान ही सम्पूर्ण व्यवस्था करते थे ।२ राज्याभिषेक विवाह आदि अवसरों पर 'श्रेणिगण' के प्रधानों द्वारा विभिन्न प्रकार के माङ्गलिक कार्य भी सम्पादित किए जाते थे। इन तथ्यों से यह सिद्ध होता है कि राजारों ने इन 'श्रेणिगण' प्रधानों को राज्य में महत्त्वपूर्ण स्थान दे रखा था तथा इन्हीं के माध्यम से वे राज्य के सम्पूर्ण शिल्प आदि व्यवसायों को भी नियन्त्रित किए हुए थे। कृषि-ग्रामों के समान ही शिल्प-व्यवसाय भी विकेन्द्रीकरण की नीति से प्रभावित हो चुके थे। तत्कालीन शिल्प सम्बन्धी भवनविन्यास, मूत्तिकला आदि के ऐश्वर्य-वैभव को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि शिल्पव्यवसाय अत्यधिक प्रगति पर था। इसी उद्देश्य से राजाओं ने आर्थिक व्यवस्था को सन्तुलित बनाए रखने के लिए शिल्पियों को श्रेणियों के माध्यम से पूर्णत: नियन्त्रित कर रखा था ।५ शिल्प सम्बन्धी व्यवसायियों के हस्तान्तरण की ओर संकेत करते हुए वराङ्गचरित में अनेक शिल्पियों को दहेज के रूप में देने का भी उल्लेख प्राप्त होता है। पद्मानन्द महाकाव्य में राज्य के सन्दर्भ में 'कुम्भकार', 'तक्षक' (बढ़ई) 'चित्रक' (चित्रकार), 'कुविन्द' (जुलाहा), तथा 'नापित' (नाई)-पांच शिल्पियों की विशेष रूप से चर्चा की गई है। चतुर्दश रत्नों १. श्रेणिप्रधानेश्वरमन्त्रि मुख्यास्तौ स्नापायां प्रीति मुखा बभूवुः । -वराङ्ग०, १६.१६ तथा अष्टादशश्रेणिगणप्रधाना बहुप्रकारैर्मणिरत्नमित्रैः । गन्धोदकैश्चन्दनवारिभिश्च पादाभिषेक प्रथम प्रचक्रुः । -वही, ११.६३ २. वही, १६.२५ ३. वही, ११.६३, १६.१६ ४. सुशिल्पिनिर्मापितरम्यशालं मृदङ्गगीतध्वनितुङ्गशालम् । वन्दारुदिव्यस्तुतिपूरिताशं बभूव तच्चैत्यगृहं विशालम् ।। -वही, २२.५६ ५. अष्टादशश्रेरिणगणप्रधानरष्टादशान्येव दिनानि तत्र । कश्चिद्भटस्यावनिपात्मजायाश्चक्रे विभूति महती महद्भिः ।। -वही, १६.२५ ६. सुशिल्पिन: कम करा विनीता दत्तानि पित्रा विधिवददुहित्रे । -वही, १९.२२ ७. तेनिरे तदनु कुम्भकारकाः । -पद्मा०, ५१०.७२, तथा तु० तक्षचित्रककविन्दनापितानातनोदिति स पञ्चशिल्पिनः । स्वाम्यमी तु शतधाऽभवन् यतो विंशति प्रकृतिरेक एककः ॥ -वही, १०.७३
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy