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________________ अर्थव्यवस्था एवं उद्योग-व्यवसायं १६६ ग्रामाधीशों' तथा गोष्ठमहत्तरों द्वारा राजानों का स्वागत करने तथा सम्पत्तियों को राजा को भेंट करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। ये 'मामाधीश' तथा 'गोष्ठमहत्तर' राजाओं तथा कृषकों आदि के मध्य रहने वाले वे लोग थे जो कृषकों द्वारा किए गए उत्पादन पर नियन्त्रण रखते थे तथा उसके बदले राजा को धन आदि देकर प्रसन्न भी करते थे। ५. हेमचन्द्र ने 'कुटुम्बी' कृषकों को सामन्त राजाओं के तुल्य कर देने वाले तथा अधीन रहने वाले कहा है। हेमचन्द्र द्वारा 'कुटुम्बी' शब्द का प्रयोग सम्भवतः साधारण कृषक से न होकर जमींदार-कृषकों अथवा 'ग्रामाधीश' के समकक्ष रहा था। क्योंकि राजा की आगवानी करने का कार्य साधारण किसान नहीं अपितु किसानों के मुखिया आदि ही करते थे । इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि 'कृषक' का पर्यायवाची शब्द 'कुटुम्बी' प्रशासकीय अधिकार सम्पन्न 'ग्रामाधीश' के अर्थ में रूढ़ हो गया था । सामन्ती ढांचे के सन्दर्भ में श्रेरिणगरण-प्रधान __ ऐसा प्रतीत होता है कि जैन संस्कृत महाकाव्यों के काल में विभिन्न प्रकार के शिल्पी तथा कर्मकार अपने-अपने श्रेणि-प्रधानों के आधिपत्य से जीविकोपार्जन करते ये । राज्यव्यवस्था के सन्दर्भ में भी इन विविध श्रेणियों के प्रधानों की १. तु०-मलेच्छा मडम्बनगरपामादीनामधीश्वराः । तं तत्रेयुः सर्वतोऽपि पाशाकृष्टा इव द्रुतम् ।। भूषणानि विचित्राणि रत्नानि वासनानि च । रजतं च सुवर्ण तुरङ्गान् कुञ्जरानपि ।। स्यन्दनान्यन्यदपि यत् प्रकृष्टं वस्तुकिञ्चन । सेनान्ये तदुपनिन्युासापितमिवाऽथ ते ॥ -त्रिषष्टि०, २.४-१७०-७२ २. रुचिररल्लकराजितविग्रहैविहित संभ्रमगोष्ठमहत्तरैः । पथि पुरोदधिसर्पिरुपायनान्युपहितानि विलोक्य स पिप्रिये ॥ -चन्द्र०, १३.४१ Thapar, A History of India, I, p. 242. कुटुम्बिका इव वयं करदा वशगाश्च वः ।। स्थास्यामोऽत्रेति सेनान्यं ते बद्धाञ्जलयोऽवदन् । '-त्रिषष्टि०, २.४.१७३ तथा कुटुम्बिनः पत्तयो वा, सामन्ता वा त्वदाज्ञया । अतः परं भविष्यामस्त्वदधीना हि नः स्थितिः ॥ -वही, २.४.२४० ५. विशेष द्रष्टव्य, प्रस्तुत ग्रन्थ, पृ० १२४-४२
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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