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________________ १६६ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज किसी भी शक्तिशाली सामन्त राजा से मित्रता जोड़ सकते थे।' वराङ्गचरित महाकाव्य में निर्भय राज्य करने तथा युद्ध से बचने के लिए देशादि भूमि को उपहार के रूप में देने का उल्लेख भी पाया है । हम्मीर महाकाव्य में अलाउद्दीन द्वारा भूमि मांगने का यद्यपि उल्लेख नहीं आया है किन्तु अनेक हाथी घोड़े तथा स्वर्ण मुद्राओं की उसने भी मांग रखी थी। इसी प्रकार उत्सव-महोत्सवों तथा दहेज आदि देने के अवसरों पर भी अनेक पुर, राष्ट्र, ग्राम आदि के उपहार अथवा दान देने के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं । ४ 'पृथ्वी',५ 'वसुधा',६ 'मही',७ 'भूमि',८ 'क्षिति', आदि भूमि वाचक विशेषण राजा के भू-स्वामित्व वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालते हैं। तथा 'भूमि' से अनुप्राणित तत्कालीन सामन्तवादी अर्थ चेतना के मौलिक स्वरूप का भी उद्घाटन कर देते हैं। वराङ्गचरित चन्द्रप्रभचरित११ आदि महाकाव्यों में 'वसुधा-उपभोग' की धारणा स्पष्ट रूप से उभर कर आई है। इसी प्रकार भरत चक्रवर्ती के धन-ऐश्वर्य की चर्चा के अवसर पर जनपद, ग्राम, पुर, मडम्ब, खेटादि भूमि-इकाइयों के स्वामी होने की भी चर्चा को भी विशेष महत्त्व दिया गया है । १२ १. धनेन देशेन पुरेण साम्ना रत्नेन वा स्वेन गजेन वापि। स येन येनेच्छति तेन तेन संदेय एवेति जगौ सुनीतिः ।। -वराङ्ग०, १६.५७ २. वही, १६.५७ ३. हम्मीर०, ११.६० ४. वराङ्ग०, ११.६७, १६.२१ ५. चन्द्र०, ६.४०, पद्मा०, १.७१ ६. वराङ्ग०, ११.५७, २२.१ ७. वराङ्ग०, २.३२, ३१.११३ ८. वराङ्ग०, ११.६४.६७, १४.८३ ६. वराङ्ग०, २०.२७, २६ ६२, जयन्त०, ७५८ १०. वराङ्ग०, २१.७५ ११. तु० -परया प्रभुशक्तिसंपदा परिरक्षन्सकलां वसुंधराम् । . नयति प्रथितं यथार्थतां पृथिवीपाल इति स्वनाम यः ।। -चन्द्र०, १२.३, तथा तु० -ननु खड्गबलेन भुज्यते वसुधा न क्रमसंप्रकाशनः । -चन्द्र०, १२.३१ तथा, जयन्त०, ६.७३ १२. पद्मा०, १६.१६२-२००
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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